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________________ ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करना भावपूर्ण कल्पना ही तुम्हें कोई परिणाम दे संवेदनशीलता और भाव पैदा करो। मिलन होता है। काम-कृत्य के समय भी सकती है। तुम और बहुत-सी चीजें कर फिर तुम्हारे लिए इन विधियों को करना तुम यह प्रयोग कर सकते होः दोनों साथी सकते हो और उन्हें करने के लिए किसी सरल होगा, और फिर तुम अपने भीतर इसे कर सकते हैं। ऊर्जा को ऊपर की ओर विशेष प्रयास की जरूरत नहीं है। जब तुम जीवंतता को उदय होता अनुभव करोगे। ले जाओ, और काम-कृत्य तंत्र की साधना सोने लगो तो अपने बिस्तर को महसूस इस ऊर्जा को बीच में कहीं भी मत छोड़ो। बन जाता है। ध्यान बन जाता है। करो, तकिए को महसूस करो-शीतलता उसे सहस्रार तक आने दो। यह स्मरण लेकिन ऊर्जा को शरीर के भीतर किसी को महसूस करो। बस उसके प्रति उन्मुख रखोः जब भी तुम इस प्रयोग को करो तो चक्र पर मत छोड़ दो। हो सकता है कोई हो जाओ: तकिए के साथ खेलो। इसे बीच में मत छोड़ो। तुम्हें इसे पूरा करना आ जाए और तुम्हें कुछ करना पड़े, या अपनी आंखें बंद कर लो और एअर है। इस बात का ध्यान रखो कि कोई तुम्हें कोई फोन आ जाए और तुम्हें रुकना पड़े। कंडिशनर की, या ट्रैफिक की, या घड़ी बाधा न डाले। यदि इस ऊर्जा को तुम बीच तो इस प्रयोग को किसी ऐसे समय पर करो अथवा किसी भी चीज की आवाज को में कहीं छोड़ दो, तो वह हानिकारक हो कि कोई भी तुम्हें बाधा न डाले, और ऊर्जा सुनो। बस सुनो। उस पर कोई लेबल मत सकती है। उसे मुक्त करना है। तो उसे को किसी भी केंद्र में मत छोड़ो। वरना लगाओ, कुछ भी कहो मत। मन का सिर तक ले आओ और भाव करो कि सिर जिस केंद्र में तुम ऊर्जा को छोड़ोगे वह एक प्रयोग न करो। बस अनुभूति में जिओ। एक खुलापन बन गया है। घाव बन जाएगा, और तुम बहुत से सुबह, जागरण के पहले क्षण में जब तुम्हें भारत में हमने सहस्रार को कमल की मानसिक रोग पैदा कर ले सकते हो। तो लगे कि अब नींद जा चुकी, तो सोचने मत भांति चित्रित किया है-एक सहस्र सचेत रहो; अन्यथा इस प्रयोग को मत लगो। कुछ क्षण के लिए तुम फिर से बच्चे पंखुड़ी वाले कमल की भांति। 'सहस्रार' करो। इस विधि के लिए बिलकुल एकांत बन सकते हो-निर्दोष, ताजे। सोचना का अर्थ है सहस्र पंखुड़ी वाला, सहस्र चाहिए, और कोई बाधा न हो, और इसे शुरू मत करो। मत सोचो कि तुम क्या पंखुड़ियों का खुल जाना। जरा हजार पूरा ही करना चाहिए। ऊर्जा सिर तक करने वाले हो और कब तुम्हें दफ्तर के पंखुड़ी वाले कमल की कल्पना करो, जो आनी चाहिए, और वहां से मुक्त हो जानी लिए जाना है, और कौन-सी ट्रेन तुम खुल गया है, और उसकी हर पंखुड़ी से चाहिए। पकड़ने वाले हो। सोचना शुरू मत करो। यह प्रकाश-ऊर्जा ब्रह्मांड में जा रही है! तुम्हें कई अनुभव होंगे। जब तुम्हें उन सब फिजूल की बातों के लिए तुम्हारे फिर से, यह एक प्रेम-कृत्य है-प्रकृति से लगेगा कि किरणें ऊपर को उठने लगी, तो पास काफी समय होगा। जरा ठहरो। नहीं, अब तो परम के साथ। फिर से, यह कई बार कामोत्तेजना होगी या काम-केंद्र कुछ क्षण के लिए बस आवाजों को एक आनंद-शिखर, एक ऑर्गाज़्म हो पर सनसनी होगी। कई लोग बड़े भयभीत सुनो। कोई पक्षी गीत गा रहा है या वृक्षों से गया। और घबड़ाए हुए मेरे पास आते हैं। वे हवा गुजर रही है, या कोई बच्चा रो रहा दो प्रकार के आनंद-शिखर कहते हैं कि जब भी वे ध्यान करने लगते है, या फिर दूध वाला आया है और (आर्गाज़्म) हैं: एक यौनजन्य है और हैं, जब भी वे गहरे जाने लगते हैं, तो आवाजें कर रहा है, या दूध उंडेला जा रहा दूसरा है आध्यात्मिक। यौनजन्य आर्गाज्म कामोत्तेजना उठ आती है। वे हैरान होते हैं है। जो कुछ भी हो, उसे अनुभव करो। निम्नतम केंद्र से आता है और आध्यात्मिक कि यह क्या है? वे भयभीत हो जाते हैं उसके प्रति संवेदनशील रहो, खुले रहो। आर्गाज्म उच्चतम केंद्र से आता है। क्योंकि उनका विचार है कि ध्यान में काम उसे अपने साथ घटित होने दो और तुम्हारी उच्चतम केंद्र से तुम उच्चतम से मिलते हो नहीं होना चाहिए। लेकिन तुम जीवन के संवेदनशीलता विकसित होगी। और निम्नतम केंद्र से तुम्हारा निम्नतम से कार्य करने का ढंग नहीं जानते। यह एक मा 147
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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