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केंद्र अब प्रकाश स्रोत बन गया है, कि किरणें अब आकर वहां इकट्ठी हो रही हैं, तो फिर हृदय केंद्र की ओर बढ़ना शुरू करो। जैसे-जैसे प्रकाश हृदय केंद्र पर पहुंचेगा, जैसे-जैसे किरणें आएंगी, तुम्हारी हृदयगति बदल जाएगी । तुम्हारी श्वास गहरी हो जाएगी, और तुम्हारे हृदय एक उष्णता आ जाएगी। इस तरह ऊपर की ओर बढ़ते रहो।
और जैसे ही तुम्हें उष्णता की अनुभूति होगी, उसके साथ ही साथ तुम अनुभव करोगे कि एक 'जीवंतता', एक नया जीवन तुममें आविर्भूत हो रहा है, एक आंतरिक प्रकाश ऊर्ध्वगति कर रहा है। काम-ऊर्जा के दो हिस्से हैं: एक शारीरिक और एक साइकिक, मानसिक । तुम्हारे शरीर में हर चीज के दो हिस्से हैं। ठीक तुम्हारे शरीर और मन की तरह, तुम्हारे भीतर हर चीज के दो हिस्से हैं - एक भौतिक और दूसरा आध्यात्मिक ।
काम ऊर्जा के दो हिस्से हैं। भौतिक हिस्सा है वीर्य । वह ऊपर नहीं उठ सकता; उसके लिए कोई मार्ग नहीं है। इस कारण पश्चिम के कई मनोवैज्ञानिक कहते हैं। कि तंत्र और योग की पद्धतियां बकवास हैं और वे उनको पूरी तरह से इनकार करते हैं। काम-ऊर्जा कैसे ऊपर उठ सकती है ? न कोई मार्ग है और न ही काम - ऊर्जा ऊपर उठ सकती है। वे सही हैं, फिर भी गलत हैं। वीर्य, जो भौतिक हिस्सा है, ऊपर नहीं उठ सकता, लेकिन वही सब कुछ नहीं है - वह केवल काम - ऊर्जा का स्थूल शरीर है; वह काम ऊर्जा नहीं है।
ध्यान की विधियां
काम ऊर्जा उसका साइकिक, ऊर्जागत हिस्सा है, और साइकिक हिस्सा ऊपर उठ सकता है। और उस साइकिक हिस्से के लिए मेरुदंड का उपयोग किया जाता है— मेरुदंड और उसके चक्रों का। लेकिन उसका अनुभव करना होता है, और तुम्हारी अनुभूतियां मृत हो चुकी हैं।
मुझे स्मरण आता है कि कहीं किसी मनोचिकित्सक ने एक मरीज, एक महिला
के
बारे में लिखा है। वह इसे कुछ अनुभव करने को कह रहा था लेकिन मनोचिकित्सक को लगा कि वह अनुभव नहीं कर रही थी, बल्कि अनुभूति के बारे में सोच रही थी, और वह एक अलग बात है। तो मनोचिकित्सक ने अपना हाथ स्त्री के हाथ पर रखा और उसे दबाया, स्त्री को कहा कि वह आंख बंद करके बताए कि उसे क्या अनुभव रहा है। वह तत्क्षण बोली कि, “मुझे आपके हाथ का अनुभव हो रहा है। "
लेकिन मनोचिकित्सक ने कहा, “नहीं, यह तुम्हारी अनुभूति नहीं है। यह केवल तुम्हारा विचार है, तुम्हारा अनुमान है। मैंने अपना हाथ तुम्हारे हाथ में रखा है; तुम कहती हो तुम मेरे हाथ को अनुभव कर रहीं हो। लेकिन तुम अनुभव नहीं कर रहीं। यह अनुमान है। तुम क्या अनुभव कर रही हो ?" तो उसने कहा, “मैं आपकी अंगुलियां अनुभव कर रही हूं।"
मनोचिकित्सक ने फिर से कहा, “नहीं, यह अनुभव नहीं है। किसी चीज का अनुमान मत लगाओ। बस अपनी आंखें बंद करो और उस स्थान पर पहुंच जाओ
जहां मेरा हाथ है; फिर मुझे बताओ कि तुम क्या अनुभव करती हो ।” तब वह बोली, "ओह! मैं तो पूरी बात ही चूके जाती थी। मैं दबाव और उष्णता महसूस कर रही हूं।"
जब कोई हाथ तुम्हें स्पर्श करता है तो हाथ का अनुभव नहीं होता। दबाव और उष्णता का अनुभव होता है। हाथ तो मात्र एक अनुमान है, एक बौद्धिक बात है, अनुभूति नहीं । अनुभूति तो है दबाव और उष्णता का। अब वह अनुभव कर रही थी ।
हमने भाव को बिलकुल खो दिया है। तुम्हें भाव को विकसित करना होगा। तभी तुम इस प्रकार की विधियां कर सकते हो । वरना, वे कार्य नहीं करेंगी। तुम बस बौद्धिक व्याख्या कर लोगे। तुम सोचोगे कि तुम अनुभव कर रहे हो, और अस्तित्वगत कुछ भी नहीं होगा। यही कारण है कि मेरे पास आकर लोग कहते हैं, "आप तो हमें बताते हैं कि यह विधि बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे कुछ भी नहीं होता।” उन्होंने प्रयास तो किया, लेकिन वे एक आयाम को चूक रहे हैं-भाव का आयाम | तो पहले तुम्हें भाव के आयाम को विकसित करना होगा, और तब कुछ विधियां हैं जो तुम कर सकते हो।
भाव- केंद्र सक्रिय हो जाना चाहिए, तभी ये विधियां सहायक होंगी। वरना तुम सोचते रहोगे कि ऊर्जा ऊपर उठ रही है, लेकिन कोई अनुभूति नहीं होगी। और यदि कोई भाव की शक्ति न हो, तो कल्पना नपुंसक है, व्यर्थ है । केवल एक
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