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________________ ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करना साथ कल्पना प्रवेश कर जाती है। यदि तुम यह सूत्र कहता है, “अपनी है-और तुम भी। इसीलिए कुरान कहती प्रेम में नहीं हो तो यह बहुत कठिन हो जाता प्राण-शक्ति को प्रकाश-किरण मानो..." है कि परमात्मा प्रकाश है। तुम प्रकाश हो! है। फिर वह सक्रिय नहीं होता। स्वयं को, अपने अस्तित्व को प्रकाश पहले यह कल्पना करो कि तुम प्रकाश काम-केंद्र क्योंकि कल्पना से सक्रिय किरण की भांति सोचो... “मेरुदंड पर की किरणें मात्र हो; फिर अपनी कल्पना होता है, तो तुम सपनों में भी उत्तेजित और केंद्र से केंद्र की ओर गति करती हुई," रीढ़ को काम-केंद्र पर ले जाओ। अपने होश स्खलित हो सकते हो-वे वास्तविक हैं; पर चढ़ती हुई, “और इस प्रकार तुममें को वहां केंद्रित करो और अनुभव करो कि स्वप्न केवल कल्पना हैं। यह देखा गया जीवंतता का उदय होता है।" काम-केंद्र से प्रकाश की किरणें ऊपर की कि यदि शारीरिक रूप से आदमी स्वस्थ योग ने तुम्हारे मेरुदंड को सात चक्रों में ओर उठ रही हैं, जैसे कि काम-केंद्र हो तो हर पुरुष रात में कम से कम दस बांटा है। पहला है काम-केंद्र और अंतिम प्रकाश का एक स्रोत बन गया हो और बार कामोत्तेजित होता है। मन की हर गति है सहस्रार, और इन दोनों के बीच पांच प्रकाश-किरणें एक अतिशय में नाभिकेंद्र के साथ, काम के थोड़े से विचार से भी, चक्र हैं। कई व्यवस्थाएं उसे पांच में की ओर ऊपर उठ रही हों। उत्तेजना आ जाएगी। तुम्हारे मन में विभाजित करती हैं। अन्य कुछ व्यवस्थाएं विभाजन की जरूरत है क्योंकि तुम्हारे बहुत-सी ऊर्जाएं हैं, बहुत-सी क्षमताएं हैं, नौ में विभाजित करती हैं, कुछ तीन में, लिए अपने काम-केंद्र को सहस्रार से और उनमें से एक है इच्छाशक्ति। लेकिन कुछ चार में विभाजन अर्थपूर्ण नहीं है। जोड़ना कठिन होगा। इसलिए छोटे-छोटे काम की तुम इच्छा नहीं कर सकते। तुम अपना स्वयं का विभाजन बना ले विभाजन सहायक होंगे। यदि तुम सीधे ही कामवासना के लिए इच्छा नपुंसक है। सकते हो। पांच चक्र प्रयोग करने के लिए जुड़ सको, तो किसी विभाजन की जरूरत यदि तुम किसी से प्रेम करने की चेष्टा पर्याप्त हैं: पहला काम-केंद्र है, दूसरा नहीं है। तुम फिर काम-केंद्र और उसके करो, तो तुम्हें लगेगा कि तुम नपुंसक हो नाभि के ठीक पीछे, तीसरा ठीक हृदय के बाद के सारे विभाजनों को छोड़ सकते हो, गए हो। इसलिए कभी चेष्टा मत करो। पीछे, चौथा तुम्हारी दो भौहों के पीछे, ठीक और ऊर्जा, जो जीवन शक्ति है वह प्रकाश इच्छा कभी कामवासना के साथ सक्रिय बीच में, मस्तक के मध्य में। और पांचवा की तरह सहस्रार की ओर उठ जाएगी। नहीं होती; केवल कल्पना ही कार्य करेगी। चक्र, सहस्रार, ठीक सिर के शिखर पर लेकिन विभाजन अधिक सहयोगी होंगे कल्पना करो, और काम-केंद्र सक्रिय होने है। ये पांच काम देंगे। क्योंकि तुम्हारा मन छोटे खंडों को अधिक लगेगा। मैं इस तथ्य पर क्यों जोर दे रहा यह सूत्र कहता है, “स्वयं सरलता से आत्मसात कर सकता है। हूं? -क्योंकि यदि कल्पना ऊर्जा को को...मानो" : जिसका अर्थ हुआ अपनी तो बस यह अनुभव करो कि ऊर्जा, गतिमान होने में सहयोग करती है, तो तुम कल्पना करो-अपनी आंखें बंद कर लो प्रकाश-किरणें एक नदी की भांति तुम्हारे कल्पना से ही उसे ऊपर या नीचे की ओर और कल्पना करो कि तुम प्रकाश हो। यह काम-केंद्र से नाभि की ओर उठ रही हैं। गतिमान कर सकते हो। कल्पना के द्वारा मात्र कल्पना ही नहीं है। प्रारंभ में तो यह तत्क्षण तुम अपने भीतर एक उष्णता को तुम अपने रक्त को गतिमान नहीं कर कल्पना है, लेकिन यह वास्तविकता भी है उदित होता अनुभव करोगे। शीघ्र ही सकते; कल्पना के द्वारा तुम शरीर में और क्योंकि सबकुछ प्रकाश से ही बना है। तुम्हारी नाभि गरम हो जाएगी। तुम गरमी कुछ भी नहीं कर सकते। लेकिन विज्ञान अब कहता है कि सबकुछ प्रकाश को अनुभव कर सकते हो; दूसरे भी उस काम-ऊर्जा को कल्पना द्वारा गतिमान से बना है; विज्ञान कहता है कि सबकुछ गरमी को अनुभव कर सकते हैं। तुम्हारी किया जा सकता है, तुम उसकी दिशा विद्युत से बना है। तंत्र ने सदा से यही कहा कल्पना से काम-ऊर्जा उठना शुरू कर बदल सकते हो। है कि सबकुछ प्रकाश-कणों से बना देगी। जब तुम्हें लगे नाभि पर स्थित दूसरा 145
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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