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हो । काम-केंद्र से तुम सापेक्ष अस्तित्व में बह जाते हो। ये दो प्रवाह हैं, दो संभावनाएं हैं। जब तक तुम ऊपर की ओर बहना न शुरू कर दो, तुम्हारा दुख कभी समाप्त नहीं होगा। हो सकता है तुम्हें सुख की झलकें मिली हों, लेकिन केवल झलकें ही - और वे भी भ्रांतियां हैं।
जब ऊर्जा ऊपर की ओर उठने लगेगी तो तुम्हें अधिकाधिक वास्तविक झलकें मिलने लगेंगी। और एक बार वह सहस्रार पर पहुंच जाए और वहां से मुक्त हो जाए तो तुम्हें पूर्ण आनंद प्राप्त होगा - वही निर्वाण है । फिर कोई झलकें नहीं आतीं : तुम स्वयं ही आनंद बन जाते हो। तो योग और तंत्र के लिए पूरी बात ही यह है कि कैसे ऊर्जा को मेरुदंड के, रीढ़ के माध्यम से ऊपर की ओर उठाया जाए, कैसे उसे गुरुत्वाकर्षण के विपरीत गतिमान किया जाए। कामवासना बहुत सरल है क्योंकि वह गुरुत्वाकर्षण का अनुसरण करती है। पृथ्वी हर चीज को वापस नीचे खींच रही है; तुम्हारी काम-ऊर्जा पृथ्वी के द्वारा खींची जा रही है। शायद तुमने सुना न हो, लेकिन अंतरिक्षयात्रियों को यह अनुभव होता है - जिस क्षण वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलते हैं, उन्हें कामुकता का कोई बहुत अनुभव नहीं होता। जैसे ही शरीर भार खोता है, कामुकता विलीन हो जाती है, समाप्त हो जाती है।
पृथ्वी तुम्हारी जीवन-ऊर्जा को नीचे की ओर खींच रही है और यह स्वाभाविक है, क्योंकि जीवन-ऊर्जा पृथ्वी से ही आती है।
ध्यान की विधियां
तुम भोजन लेते हो तो अपने भीतर जीवन-ऊर्जा निर्मित कर रहे हो; वह पृथ्वी से आती है, और पृथ्वी उसे वापस खींच रही है। सबकुछ अपने स्रोत पर लौट जाता है। और यदि यह इसी तरह से चलता रहता है, कि जीवन- ऊर्जा बार-बार वापस लौटती रहे, तो तुम एक चक्र में गति कर रहे हो; तुम जन्मों-जन्मों तक चक्कर लगाते रहोगे । इस प्रकार तुम अनंतकाल तक चक्कर लगाते रह सकते हो जब तक कि तुम अंतरिक्षयात्रियों की तरह छलांग न ले लो। अंतरिक्षयात्रियों की तरह तुम्हें छलांग लगानी होगी और वर्तुल से बाहर निकल आना होगा। फिर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का ढांचा टूट जाता है। उसे तोड़ा जा सकता है।
कैसे उसे तोड़ा जा सके वे विधियां यहां हैं— कि कैसे ऊर्जा तुम्हारे भीतर ऊर्ध्वगामी होकर नए-नए केंद्रों पर पहुंचती हुई ऊपर उठ सकती है; कि कैसे तुम्हारे भीतर नई-नई ऊर्जाएं प्रगट की जाएं, जो तुम्हें हर प्रवाह के साथ एक नया व्यक्ति बना जाएं। और जिस क्षण ऊर्जा तुम्हारे सहस्रार से, काम के विपरीत ध्रुव से मुक्त होती है, तो तुम मनुष्य नहीं रहते। फिर तुम इस पृथ्वी से संबंधित नहीं रहते; तुम दिव्य हो गए। जब हम कहते हैं कृष्ण भगवान हैं, या बुद्ध भगवान हैं, तो उसका यही अर्थ है । उनके शरीर तो तुम्हारे जैसे ही हैं। उनके शरीरों को बीमार पड़ना होगा और उनको मरना भी होगा। उनके शरीरों में तो सबकुछ वैसा ही होता है जैसे तुम्हें होता है। उनके शरीर में बस एक ही चीज
नहीं हो रही जो तुम्हारे शरीर में हो रही है; ऊर्जा ने गुरुत्वाकर्षण का बंधन तोड़ दिया है।
वह तुम नहीं देख सकते; वह तुम्हारी आंखों को दिखाई नहीं देता। लेकिन कभी जब तुम किसी बुद्ध के पास बैठे होओ, तो यह अनुभव कर सकते हो। अचानक तुम्हें लगता है कि तुम्हारे भीतर ऊर्जा का संचार ..हुआ और तुम्हारी ऊर्जा ऊपर की ओर गति करने लगती है। तभी तुम्हें बोध होता है कि कुछ हुआ। किसी बुद्ध के संपर्क में आते ही तुम्हारी ऊर्जा ऊपर सहस्रार की ओर उठने लगती है। एक बुद्ध इतना शक्तिशाली है, कि पृथ्वी भी कम शक्तिशाली रह जाती है, वह तुम्हारी ऊर्जा को नीचे की ओर नहीं खींच सकती। किसी जीसस, किसी बुद्ध, किसी कृष्ण के आस-पास जिन्होंने यह अनुभव किया उन्होंने उन्हें भगवान कहा है। उनके पास ऊर्जा का एक भिन्न स्रोत है जो पृथ्वी से अधिक मजबूत है।
गुरुत्वाकर्षण के इस बंधन को किस प्रकार तोड़ा जा सकता है? यह विधि इस ढांचे को तोड़ने में बड़ी उपयोगी है। पहले एक बुनियादी बात को समझ लो । एक, तुमने यदि कभी ध्यान दिया हो, तो तुमने देखा होगा कि तुम्हारी काम-ऊर्जा कल्पना से गति करती है। कल्पना से ही तुम्हारा काम-केंद्र सक्रिय हो जाता है। वास्तव में, कल्पना के बिना वह संक्रिय हो ही नहीं सकता। यही कारण है कि जब तुम किसी के साथ प्रेम में होते हो तो वह बेहतर ढंग से कार्य कर सकता है क्योंकि प्रेम के
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