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व ने कहा: अपनी प्राण-शक्ति को मेरुदंड पर
केंद्र से केंद्र की ओर गति करती हुई प्रकाश-किरण समझो; और इस प्रकार तुममें जीवंतता का उदय होता है।
बहुत-सी योग पद्धतियां इस पर आधारित हैं। पहले समझो कि यह क्या है, और तब प्रयोग । मेरुदंड, रीढ़ तुम्हारे शरीर और मन दोनों का आधार है। तुम्हारा
जीवन ऊर्जा का आरोहण - 1
मस्तिष्क, तुम्हारा सिर, तुम्हारी रीढ़ का अंतिम छोर है। पूरा शरीर मेरुदंड में मूलबद्ध है। यदि मेरुदंड युवा है, तो तुम युवा हो । यदि मेरुदंड वृद्ध है, तो तुम वृद्ध हो । यदि तुम अपने मेरुदंड को युवा रख सको, तो वृद्ध हो पाना कठिन है । तुम्हारा सब कुछ मेरुदंड पर ही निर्भर है। यदि तुम्हारा मेरुदंड जीवंत है, तो तुम्हारे मस्तिष्क में प्रखर मेधा होगी। यदि वह मंद और मृत है, तो तुम्हारा मस्तिष्क मंद होगा। पूरा योग कई-कई ढंगों से प्रयास
ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करना
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करता है कि तुम्हारी मेरुदंड जीवंत, प्रखर, आलोकित, युवा और ताजा हो जाए।
मेरुदंड के दो छोर हैं। आरंभ में काम-केंद्र है और अंत में सहस्रार - सिर के ऊपर का सातवां चक्र है । मेरुदंड का आरंभ पृथ्वी से जुड़ा है, और तुम्हारे भीतर सबसे पार्थिव चीज है। अपने मेरुदंड के आरंभिक चक्र से तुम सृष्टि के संपर्क में आते हो, उसके संपर्क में आते हो जिसे प्रकृति, पृथ्वी या पदार्थ कहा गया है। अंतिम चक्र, या दूसरे ध्रुव - सिर के
भीतर स्थित सहस्रार - से तुम दिव्य के, परमात्मा के संपर्क में आते हो। तुम्हारे अस्तित्व के ये दो ध्रुव हैं: पहला काम-केंद्र है और दूसरा सहस्रार है। अंग्रेजी में सहस्रार के लिए कोई शब्द नहीं है। ये दो ध्रुव हैं - या तो तुम्हारा जीवन काम-उन्मुख होगा, या सहस्रार-उन्मुख होगा । या तो तुम्हारी ऊर्जा काम-केंद्र से नीचे पृथ्वी की ओर बहेगी, या सहस्रार से ब्रह्मांड में विलीन हो जाएगी। सहस्रार से तुम ब्रह्म में, परम अस्तित्व में प्रवाहित होते