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________________ ध्यान की विधियां सकता है, तो तुम सूर्य के पूरे प्रकाश में भी यदि तुममें उत्तेजित होने की प्रवृत्ति हो। वे प्रतिक्रिया नहीं उठती। इसे करके देखो। अंधेरी से अंधेरी रात जैसा अंधकार फैला अपने आप से ही नहीं रहते; वे तुम्हारे जब कोई तुम्हारा अपमान करे, तो इतना सकते हो। सूर्य निकला हुआ है, लेकिन उत्तेजित होने की क्षमता के कारण होते हैं। स्मरण रखो कि तुम अंधकार से भरे हुए तुम अंधकार फैला सकते हो। अंधकार कोई तुम्हारा अपमान कर देता है, और उस हो, और अचानक तुम्हें लगेगा कि कोई सदा मौजूद है; जब सूर्य मौजूद हो तब भी अपमान को आत्मसात कर लेने के लिए प्रतिक्रिया नहीं हो रही। तुम एक सड़क से अंधकार तो रहता ही है। तुम उसे देख नहीं तुम्हारे भीतर कोई अंधकार न हो, तो तुम गुजरते हो; किसी सुंदर स्त्री या पुरुष को सकते; वह सूर्य के प्रकाश से ढंका रहता जलने लगते हो, क्रोधित हो जाते हो, देखा-तुम उत्तेजित हो जाते हो। अनुभव है। एक बार तुम जान जाओ कि उसे कैसे प्रज्वलित हो जाते हो, और तब सब कुछ करो कि तुम अंधकार से भरे हुए हो; उघाड़ना है, तो तुम उसे उघाड़ सकते हो। संभव है। तुम हिंसक हो सकते हो, हत्या अचानक उत्तेजना विलीन हो जाती है। यह यही विधि है। पहले उसे भीतर अनुभव कर सकते हो, वह काम तक कर सकते हो प्रयोग तुम करके देखो। यह बिलकुल करो; उसे गहन रूप से अनुभव करो ताकि जो कोई पागल ही करे। कुछ भी संभव प्रयोगात्मक है, इस पर विश्वास करने की उसे बाहर भी प्रत्यक्ष कर सको। तब है-अब तुम पागल हो गए। कोई तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। अचानक आंखें खोलो और उसे बाहर प्रशंसा कर देता है: तब फिर तुम दूसरी जब भी तुम्हें लगे कि तुम उत्तेजना से या अनुभव करो। इसमें समय लगेगा। अति पर पहुंचकर पागल हो जाते हो। इच्छा से या कामवासना से भर गए हो तो और यदि तुम आंतरिक अंधकार को तुम्हारे चारों ओर परिस्थितियां हैं, और बस आंतरिक अंधकार का स्मरण करो। बाहर ला पाओ तो दोष सदा के लिए तुम उन्हें आत्मसात करने में सक्षम नहीं एक क्षण के लिए अपनी आंखें बंद करो विलीन हो जाते हैं, क्योंकि यदि आंतरिक हो। किसी बुद्ध का अपमान करोः वह और अंधकार को अनुभव करो और तुम अंधकार की अनुभूति हो जाए तो तुम इतने उसे आत्मसात कर सकता है, चुपचाप उसे देखोगे कि उत्तेजना विलीन हो गई, कामना शीतल, इतने शांत, इतने अनुत्तेजित हो निगल सकता है, पचा सकता है। उस नहीं रही। आंतरिक अंधकार ने उसे जाओगे कि दोष तुम्हारे साथ रह ही नहीं अपमान को कौन पचाता है?-अंधकार आत्मसात कर लिया। तुम एक अनंत शून्य सकते। का, मौन का एक आंतरिक सरोवर। तुम हो गए जिसमें कुछ भी गिर जाए तो वापस इसे स्मरण रखोः दोष तभी रह सकते हैं कोई भी विषाक्त चीज उसमें फेंक दो; वह नहीं लौटेगा। अब तुम एक अंतहीन खाई जब तुममें उत्तेजित होने की संभावना हो, आत्मसात हो जाती है। उससे कोई की भांति हो गए। 140
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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