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________________ अंधकार पर ध्यान बिलकुल सागरवत है : और कुछ भी इतना जैसा मैंने तुम्हें कहा, यदि तुम एक है-तुम बहुत ही विश्रांत अनुभव करोगे। विराट, इतना शाश्वत नहीं है। और अन्य ज्योतिशिखा बनाए रखो और अनुभव करो इस प्रयोग को करो। तुम अत्यंत विश्रांत कुछ भी तुम्हारे इतने करीब नहीं है, और कि तुम प्रकाश हो तो तुम्हारा शरीर एक अनुभव करोगे। तुममें हर चीज धीमी हो किसी और चीज से तुम इतने भयभीत व विशेष प्रकार का अदभुत प्रकाश जाएगी। तुम दौड़ नहीं पाओगे, बस डरे हुए भी नहीं हो। अंधकार बस करीब विकीर्णित करने लगेगा और जो लोग चलोगे, और वह चलना भी धीमा होगा। ही मौजूद है, सदा प्रतीक्षा कर रहा है। संवेदनशील हैं वे उसे अनुभव करने तुम धीरे-धीरे चलोगे, जैसे कोई गर्भवती लगेंगे; अंधकार के साथ भी ऐसा ही स्त्री चलती है। तुम धीरे-धीरे, अत्यंत दूसरा चरणः होगा। सावधानी से चलोगे। तुम कुछ लेकर चल ___ यदि तुम अपने भीतर अंधकार लेकर रहे हो। लेट जाओ और ऐसा भाव करो कि तुम चलो तो तुम्हारा पूरा शरीर इतना शिथिल, और जब तुम ज्योतिशिखा लेकर अपनी मां के पास हो। अंधकार मां है, शांत और शीतल हो जाएगा कि वह चलोगे तो इसके ठीक विपरीत घटना सबकी मां है। सोचो: जब कुछ भी नहीं महसूस होगा। और जिस प्रकार तुम जब घटेगीः तुम्हारी चाल तेज हो जाएगी; था, तो क्या था? तुम अंधकार को प्रकाश अपने भीतर लेकर चलते हो तो बल्कि तुम दौड़ना पसंद करोगे। गति बढ़ छोड़कर कुछ और नहीं सोच सकते। जब कुछ लोग तुम्हारी ओर आकर्षित होते हैं, जाएगी, तुम अधिक सक्रिय हो जाओगे। सब कुछ समाप्त हो जाएगा, तब भी क्या वैसे ही जब तुम अपने भीतर अंधकार अंधकार को लेकर चलते समय तुम बच रहेगा? अंधकार होगा। लेकर चलोगे तो कुछ लोग तुमसे बचकर विश्रांत हो जाओगे। दूसरों को यह लगने अंधकार मां है, गर्भ है, तो लेट जाओ भागने लगेंगे। वे भयभीत हो जाएंगे और लगेगा कि तुम सुस्त हो गए हो। और भाव करो कि तुम अपनी मां के गर्भ डर जाएंगे। वे इतनी शांत अंतस-सत्ता को . जिन दिनों मैं यूनिवर्सिटी में था, तो दो में पड़े हो। और यह यथार्थ हो जाएगा, सहन नहीं कर पाएंगे; यह उनके लिए वर्ष से मैं यह प्रयोग कर रहा था। मैं इतना उष्ण हो जाएगा, और देर-अबेर तुम्हें असहनीय हो जाएगा। सुस्त हो गया कि सुबह बिस्तर से उठना लगने लगेगा कि एक अंधकार, एक गर्भ सारे दिन अंधकार को अपने भीतर भी कठिन हो गया। मेरे प्रोफेसर इस बात तुम्हें सब ओर से घेरे हुए है, तुम उसके लेकर चलना अत्यंत सहायक होगा, से बड़े परेशान हो गए, और उन्हें लगा कि . भीतर हो। क्योंकि फिर जब तुम रात को अंधकार पर मेरे साथ कोई गड़बड़ हो गई है—या तो मैं मनन करोगे और ध्यान करोगे तो वह बीमार हूं, या बिलकुल उदासीन हो गया तीसरा चरणः आंतरिक अंधकार जो तुम सारा दिन लेकर हूं। एक प्रोफेसर जो मुझसे बहुत प्रेम करते घूमे हो वह तुम्हें बाहर के अंधकार से थे, मेरे विभागाध्यक्ष, इतने चिंतित हो गए चलते हुए, कार्य पर जाते हुए, बोलते मिलने में मदद करेगा-आंतरिक कि परीक्षा के दिनों में सुबह मुझे होस्टल हुए, खाते हुए, कुछ भी करते हुए, अंधकार बाह्य से मिलने के लिए आ से परीक्षा-भवन ले जाने के लिए आते अंधकार का एक टुकड़ा अपने भीतर लिए जाएगा। ताकि मैं समय पर पहुंच जाऊं। प्रतिदिन रहो। जो अंधकार तुममें प्रवेश कर गया है, और केवल इस स्मरण मात्र से कि तुम जब वे यह देख लेते कि मैं परीक्षाभवन में उसे बनाए रखो। जिस प्रकार हमने अंधकार लेकर चल रहे हो-तुम अंधकार प्रवेश कर गया हूं, तभी वे चैन की सांस ज्योतिशिखा बनाए रखने की विधि पर बात से भर जाते हो, शरीर का रोम-रोम, शरीर लेते और घर जाते। की, वैसे ही अंधकार भी बनाए रखो। की हर कोशिका अंधकार से भर जाती इस प्रयोग को करके देखो। अपने गर्भ 137
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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