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प्रकाश पर ध्यान
व ने कहाः सोते, जागते
। और स्वप्न देखते समय स्वयं को प्रकाश की भांति जानो।
जागते, चलते, खाते, कार्य करते हुए प्रकाश की भांति अपना स्मरण रखो, जैसे कि तुम्हारे हृदय में कोई ज्योति जल रही है,
और तुम्हारा शरीर उस ज्योति के चारों ओर एक आभामंडल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। यह कल्पना करोः तुम्हारे हृदय
प्रकाश का हृदय
में एक ज्योति जल रही है, और तुम्हारा दिन स्मरण रख पाने में सक्षम हो जाओगे। शरीर नहीं, वरन एक विद्युत शरीर, एक शरीर उस ज्योति के इर्द-गिर्द एक प्रकाश जागरण काल में, जब सड़क पर चल रहे प्रकाश शरीर। इसे करते चले जाओ। मंडल के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो, तो तुम एक ज्योति हो जो चल रही है। यदि तुम प्रयास पर दृढ़ रहे, तो तीन तुम्हारा शरीर उस ज्योति के चारों ओर एक प्रारंभ में तो किसी और को इसकी खबर महीने के भीतर, या उसके आस-पास प्रकाश है। इसे अपने मन और अपनी नहीं होगी, लेकिन यदि तुम इस प्रयोग को दूसरे भी सजग होने लगेंगे कि तुम्हें कुछ चेतना में गहरा उतर जाने दो। इसे जारी रखो तो तीन महीने बाद दूसरे भी हो गया है। उन्हें तुम्हारे चारों ओर एक आत्मसात कर लो।
सजग होने लगेंगे। जब दूसरे सजग हो सूक्ष्म प्रकाश का अनुभव होगा। जब तुम इसमें समय लगेगा, लेकिन यदि तुम जाएं तब तुम सहज हो सकते हो। किसी से उनके पास आओगे, तो उन्हें एक नई उष्मा इसके बारे में सोचते ही चले जाओ, इसका कुछ मत कहो। बस एक ज्योति की की अनुभूति होगी। यदि तुम उन्हें छुओ,
अनुभव करते रहो, इसकी कल्पना करते कल्पना करो, और तुम्हारा शरीर इसके तो उन्हें एक उष्ण स्पर्श का आभास होगा। रहो, तो एक निश्चित समय में तुम इसे पूरे चारों ओर एक आभामंडल हो-भौतिक वे सजग हो जाएंगे कि तुम्हारे साथ कुछ
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