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ध्यान की विधियां
अदभुत घट रहा है। किसी को भी बताओ कम होते जाएंगे और नींद अधिक से यदि तुम सजग हो सको कि तुम एक मत। जब दूसरे सजग हो जाएं, तो तुम अधिक गहरी होती जाएगी।
ज्योति हो, एक प्रकाश हो, कि नींद तुम्हें विश्रांत हो सकते हो, और तभी तुम दूसरे जब तुम्हारे स्वप्न में यह वास्तविकता नहीं घट रही, तो तुम जागरूक हो। तुम चरण में प्रवेश कर सकते हो, उससे पहले प्रगट हो जाती है कि तुम प्रकाश हो, एक एक जागरूक प्रयास कर रहे हो; अब तुम नहीं।
ज्योति हो, एक ज्वलंत ज्योति हो, तो सभी उस ज्योति के चारों ओर सुगठित हो गए। दूसरा चरण है, इसको स्वप्न में ले स्वप्न समाप्त हो जाएंगे। जब तुम्हारे स्वप्न शरीर सोया है, तुम नहीं। जाना। अब तुम इसे स्वप्न में ले जा सकते समाप्त हो जाएं तभी इस भाव को तुम नींद कृष्ण यही गीता में कहते हैं: योगी हो। यह एक वास्तविकता बन गई है। अब में ले जा सकते हो, उससे पहले नहीं। अब कभी सोते नहीं। जब दूसरे सोते हैं, तो भी यह कोई कल्पना नहीं है। कल्पना के द्वारा तुम द्वार पर आ खड़े हुए। जब स्वप्न वे जागे होते हैं। ऐसा नहीं कि उनके शरीर तुमने एक वास्तविकता को उघाड़ लिया समाप्त हो जाएं और तुम स्वयं को एक कभी नहीं सोते, उनके शरीर तो सोते है। यह यथार्थ है। हर चीज प्रकाश से बनी ज्योति की भांति स्मरण रखो, तो तुम नींद हैं लेकिन शरीर ही। शरीर को विश्राम है। तुम प्रकाश हो-भले ही इस बात से के द्वार पर पहुंच गए। अब तुम इस भाव चाहिए, चेतना को कोई विश्राम नहीं अनभिज्ञ हो-क्योंकि पदार्थ का हर कण के साथ प्रवेश कर सकते हो। और एक चाहिए; क्योंकि शरीर तो यंत्र है, चेतना प्रकाश है।
बार तुम इस भाव के साथ नींद में प्रवेश कोई यंत्र नहीं है। शरीर को ईंधन चाहिए, वैज्ञानिक कहते हैं कि पदार्थ इलेक्ट्रॉन्स कर जाओ कि तुम एक ज्योति हो, तो तुम उसे विश्राम चाहिए। यही कारण है कि जब से बना हैयह एक ही बात है। प्रकाश उसमें सजग बने रहोगे-नींद अब तुम्हारे शरीर पैदा होता है तो युवा होता है, फिर सबका स्रोत है। तुम भी सघनीभूत प्रकाश शरीर को घटेगी, तुम्हें नहीं।
वह वृद्ध होता है, और फिर वह मर जाता होः कल्पना के द्वारा तुम बस एक योग और तंत्र मानवीय मन को तीन है। चेतना न कभी पैदा होती है, न कभी वास्तविकता को ही उघाड़ रहे हो। इसे खंडों में बांटते हैं-मन के आयाम को, बूढ़ी होती है, न कभी मरती है। उसे कोई आत्मसात करो-और जब तुम इससे पूरे स्मरण रखना। वे मन को तीन खंडों में ईंधन नहीं चाहिए, कोई विश्राम नहीं भर जाओ, तभी इसे स्वप्न में भी ले जा बांटते है: जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। ये चाहिए। वह शुद्ध ऊर्जा है, अहर्निश सकते हो, उससे पहले नहीं।
तुम्हारी चेतना के खंड नहीं हैं, तुम्हारे मन शाश्वत ऊर्जा है। फिर सोते समय ज्योति के विषय में के खंड हैं, और चेतना है-चौथी। यदि तुम ज्योति और प्रकाश की इस सोचते रहो, उसे देखते रहो, अनुभव करते पूरब में उसे कोई नाम नहीं दिया गया आकृति को नींद के द्वारों से गुजार कर ले रहो कि तुम प्रकाश हो। इसे स्मरण करते है; वे बस इसे चतुर्थ-तुरीय-कहते हैं। जा सको, तो फिर कभी सोओगे नहीं, बस हुए...स्मरण करते-करते तुम नींद में चले पहले तीन के नाम हैं; वे बादल हैं। उनको शरीर विश्राम करेगा। और जब शरीर जाते हो, और स्मरण चलता रहता है। नाम दिया जा सकता है—जाग्रत बादल, सोया होगा, तो तुम्हें इसका बोध होगा। प्रारंभ में तुम्हें ऐसे स्वप्न आएंगे जिनमें सुषुप्त बादल और स्वप्नरत बादल। वे एक बार यह हो जाए, तो तुम चौथे हो तुम्हें लगेगा कि तुम्हारे भीतर एक ज्योति सब बादल हैं, और जिस आकाश में वे गए। अब जागना, सोना और स्वप्न है, कि तुम प्रकाश हो। धीरे-धीरे, सपनों विचरते हैं, वह अनाम है, उसे बस चतुर्थ देखना मन के तीन हिस्से हो गए। वे हिस्से में भी तुम उसी भाव से उतरोगे। और एक कह कर छोड़ दिया गया है।
हैं, और तुम चौथे हो गए—वह जो उन बार यह भाव सपनों में प्रवेश कर जाए, तो यह विधि इन तीन अवस्थाओं से ऊपर सबसे गुजरता है, और उनमें से कोई भी स्वप्न विलीन होने लगेंगे। सपने कम से उठने में तुम्हारी मदद करने के लिए है। नहीं है। 3
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