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________________ ध्यान की विधियां भीतर लो तो कल्पना करो कि एक विशाल गहरी और धीमी हो सकती है क्योंकि प्रवेश कर जाता है। प्रकाश तुम्हारे सिर से होकर तुम्हारे शरीर शरीर विश्रांत और शिथिल है। इसे सुबह-सुबह बीस मिनट के लिए में प्रवेश कर रहा है, जैसे तुम्हारे सिर के मुझे दोहराने दोः श्वास भीतर लेते हुए करो। और दूसरा सबसे अच्छा समय है, निकट ही कोई सूर्य उग गया हो-स्वर्णिम स्वर्णिम प्रकाश को सिर से अपने भीतर रात को, जब तुम वापस नींद में लौट रहे प्रकाश तुम्हारे सिर में उंडल रहा है, तुम आने दो, क्योंकि वहीं पर ही स्वर्ण-पुष्प हो। बिस्तर पर लेट जाओ, कुछ मिनट बिलकुल रिक्त हो और स्वर्णिम प्रकाश प्रतीक्षा कर रहा है। वह स्वर्णिम प्रकाश आराम करो। जब तुम्हें लगे कि अब तुम तुम्हारे सिर में उंडल रहा है, और गहरे से सहायक होगा। वह तुम्हारे पूरे शरीर को सोने और जागने के बीच डोल रहे हो, तो गहरा जाता जा रहा है और तुम्हारे पंजों से स्वच्छ कर देगा और उसे सृजनात्मकता से ठीक उस मध्य में प्रक्रिया को फिर से शुरू बाहर निकल रहा है। जब तुम श्वास भीतर पूरी तरह भर देगा। यह पुरुष-ऊर्जा है। करो, और उसे बीस मिनट तक जारी लो, तो इस कल्पना के साथ लो। फिर जब तुम श्वास छोड़ो, तो अंधकार रखो। यदि तुम इसे करते-करते सो जाओ, __ और जब तुम श्वास छोड़ो, तो एक को, जितने अंधेरे की तुम कल्पना कर तो सबसे अच्छा, क्योंकि इसका प्रभाव और कल्पना करोः अंधकार पंजों से प्रवेश सकते हो-जैसे कोई अंधेरी रात, नदी के अचेतन में बना रहेगा और वह कार्य करता कर रहा है, एक विशाल अंधेरी नदी तुम्हारे समान-अपने पंजों से ऊपर उठने दो। चला जाएगा। पंजों से प्रवेश कर रही है, ऊपर बढ़ रही है यह स्त्रैण ऊर्जा है: यह तुम्हें शांत करेगी, तीन महीने की एक अवधि के बाद तुम और तुम्हारे सिर से बाहर निकल रही है। तुम्हें ग्राहक बनाएगी, तुम्हें मौन करेगी, हैरान होओगेः जो ऊर्जा सतत मूलाधार श्वास धीमी और गहरी रखो ताकि तुम तुम्हें विश्राम देगी-और उसे अपने सिर पर, निम्नतम कामकेंद्र पर इकट्ठी हो रही कल्पना कर सको। बहुत धीरे-धीरे बढ़ो। से बाहर निकल जाने दो। तब फिर से थी, अब वहां इकट्ठी नहीं हो रही है। वह और सो कर उठने के बाद तुम्हारी श्वास श्वास लो, और स्वर्णिम प्रकाश भीतर ऊपर जा रही है। 2 126
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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