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भीतर देखना
-त्सू ने कहाः जब प्रकाश को एक वृत्त में घूमने दिया जाता
है, तब स्वर्ग और पृथ्वी की, रोशनी और अंधकार की सारी ऊर्जाएं संघटित और एकजुट हो जाती हैं।
तुम्हारी चेतना बाहर की ओर प्रवाहित हो रही है-यह एक तथ्य है, इसमें विश्वास करने की कोई जरूरत नहीं है। जब तुम किसी वस्तु को देखते हो, तब तुम्हारी चेतना उसकी ओर बहती है।
ऊर्जा का अंतर्वृत्त
उदाहरण के लिए तुम मुझे देख रहे हो। हम यह जानते हैं-यह प्रतिपल घट तुम्हें एक साथ, युगपत, विषयवस्तु और तब तुम स्वयं को भूल जाते हो और मुझ रहा है। एक सुंदर स्त्री पास से गुजरती है जाननेवाले दोनों का बोध हो सके ताकि पर केंद्रित हो जाते हो। तब तुम्हारी ऊर्जा और अचानक तुम्हारी ऊर्जा उसका तुम्हें स्वयं का बोध हो सके। तब मेरी ओर बहती है, तुम्हारी आंखें मेरी ओर अनुगमन करने लगती है। इस ऊर्जा के, आत्म-बोध का आविर्भाव होता है। टिकी हुई हैं। यह बहिर्मुखता है।
इस प्रकाश के बाहर की दिशा में बहने को सामान्यतया हम इसी आधे-आधे ढंग तुम एक फूल को देखते हो और हम जानते हैं। यह केवल आधी बात है। से जीते हैं-आधे जीवित, आधे मत। विमुग्ध हुए तुम फूल पर केंद्रित हो जाते लेकिन हर बार जब अंतस ऊर्जा, अंतस यही हमारी स्थिति है। और धीरे-धीरे हो। तुम स्वयं के प्रति अनुपस्थित हो प्रकाश बाहर बहता है, तुम स्वयं के प्रति प्रकाश बाहर की ओर प्रवाहित होता रहता जाते हो, तुम फूल के सौंदर्य मात्र के प्रति मूछित हो जाते हो। प्रकाश को वापस है और कभी वापस नहीं लौटता। तुम सजग रह जाते हो।
भीतर की ओर प्रवाहित होना चाहिए ताकि अधिक से अधिकतर रिक्त और खोखले
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