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भीतर देखना
भीतर देखना
ये
'विधियां देखने के प्रयोग से संबंधित हैं। इसके पहले कि हम इन विधियों में प्रवेश करें आंखों के संबंध में कुछ बातें समझ लेनी जरूरी है क्योंकि ये विधियां उन बातों पर आधारित हैं।
पहली बात : आंखें मनुष्य के शरीर की सबसे कम भौतिक, सबसे कम शारीरिक अंग हैं। यदि पदार्थ अपार्थिव हो सकते हों, तो यही स्थिति आंखों की है। आंखें पार्थिव हैं लेकिन साथ ही साथ वे अ- भौतिक भी हैं। आंखें तुम्हारे शरीर और तुम्हारे बीच एक मिलन बिन्दु हैं। शरीर में यह मिलन बिंदु और कहीं इतना गहरा नहीं है।
शरीर और तुम्हारे बीच एक बड़ा अलगाव है; एक बड़ी दूरी है। लेकिन आंखों के तल पर तुम शरीर के सर्वाधिक निकट हो और शरीर तुम्हारे सर्वाधिक निकट है। यही कारण है कि आंखें अंतर्यात्रा के लिए उपयोग की जा सकती हैं। आंखों से ली गई एक छलांग तुम्हें मूलस्रोत पर ले जा सकती है। यह छलाँग हाथों से लेनी संभव नहीं है, हृदय से संभव नहीं है— शरीर में और किसी अंग से संभव नहीं है। किसी भी और बिंदु से तुम्हें लंबी यात्रा करनी पड़ेगी; दूरी बड़ी है। लेकिन आंखों से लिया गया एक कदम काफी है तुम्हें स्वयं के भीतर प्रवेश करने के लिए ।
आंखें तरल हैं, गतिमय हैं, सतत गत्यात्मक हैं; और इस गतिमयता की अपनी लयबद्धता, अपनी पद्धति और अपनी प्रक्रिया है । तुम्हारी आंखें यों ही अराजक गतिशील नहीं होती हैं। उनकी अपनी लय है और यह लय कई बातें दर्शाती है। यदि तुम्हारे मन में काम-वासना के विचार