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________________ ध्यान की विधियां देगा, लेकिन कभी तुम्हारे अपने ही विषय तीसरे हो जाते हो-तुम दोनों ही नहीं चित्त को एकाग्र न कर सको, तो ज्ञाता की में नहीं जानने देगा। रहते। ज्ञेय और ज्ञाता दोनों के प्रति सजग ओर जाना भी कठिन होगा, क्योंकि तब __ ध्यान की सभी विधियां ज्ञाता को, होने की चेष्टा से ही तुम तीसरे हो जाते हो, तुम्हारा मन सदा भटका रहता है। तो जानने वाले को प्रगट करने के लिए हैं। तुम एक साक्षी हो जाते हो। तत्क्षण एक एकाग्रचित्तता ध्यान की ओर पहला कदम जॉर्ज गुरजिएफ ने ठीक इसी तरह की एक तीसरी संभावना उठती है-एक साक्षी बन जाती है। केवल गुलाब रह जाता है; विधि का उपयोग किया। वे उसे केंद्र अस्तित्व में आता है क्योंकि दोनों पूरा संसार विलीन हो गया। अब तुम आत्म-स्मरण कहते थे। वे कहते थे कि को तुम कैसे जान सकते हो? यदि तुम भीतर की ओर जा सकते हो, अब गुलाब जब भी तुम कुछ जान रहे हो तो सदा ज्ञाता हो, तो एक बिंदु पर जड़ रह जाते वह बिंदु बन जाता है जहां से तुम आगे बढ़ जानने वाले को भी जानो। उसे हो। आत्म-स्मरण में तुम ज्ञाता के उस जड़ सकते हो। अब गुलाब को देखो और स्वयं विषय-वस्तु में मत भुला दो। विषयी को, बिंदु से हट जाते हो। फिर ज्ञाता तुम्हारा मन के प्रति, ज्ञाता के प्रति सजग होने लगो। सब्जेक्ट को याद रखो। अभी तुम मुझे सुन होता है और ज्ञात होता है संसार, और तुम आरंभ में तो तुम चूकोगे। जब तुम ज्ञाता रहे हो। जब तुम मुझे सुन रहे हो, तो दो एक तीसरे बिंदु, एक चेतना, एक साक्षी पर पहुंच जाओगे, गुलाब चेतना से हट तरह से सुन सकते हो। एकः कि तुम्हारा केंद्र बन जाते हो। जाएगा। वह धूमिल हो जाएगा, दूर चला मन मेरी ओर ही केंद्रित हो-तब तुम इस तीसरे बिंदु का अतिक्रमण नहीं हो जाएगा, सुदूर हो जाएगा। फिर दोबारा तुम श्रोता को भूल जाते हो। तब वक्ता को तो: सकता, और जिसका अतिक्रमण नहीं हो गुलाब की ओर आओगे, और स्वयं को जान लिया गया, लेकिन श्रोता विस्मृत हो सकता वही परम है। जिसका अतिक्रमण भूल जाओगे। यह आंख-मिचौली का गया। हो सके वह महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि वह खेल चलता रहेगा, लेकिन तुम यदि प्रयास गुरजिएफ कहते थे कि सुनते हुए बोलने तुम्हारा स्वभाव नहीं हुआ उसका तुम करते ही रहो, तो देर-अबेर एक क्षण वाले के साथ-साथ सुनने वाले को भी अतिक्रमण कर सकते हो। आएगा जब अचानक तुम मध्य में जानो। तुम्हारा ज्ञान द्विमुखी होना तुम एक गुलाब के फूल के पास बैठे होओगे। जाननेवाला मन होगा, और चाहिए-ज्ञाता और ज्ञेय, दो बिंदुओं की होः उसे देखो। पहली बात यह करनी है गुलाब का फूल होगा, और तुम ठीक मध्य ओर इंगित करता हुआ। वह एक ही दिशा कि पूर्णतया सजग हो जाओ, गुलाब को में होओगे-दोनों को देखते हुए। वह में केवल विषय की ओर नहीं बहना पूरा ध्यान दो, ताकि पूरा संसार विलीन हो मध्य बिंदु, वह संतुलन का बिंदु ही साक्षी चाहिए। वह ज्ञेय और ज्ञाता, दो दिशाओं जाए और गुलाब ही बच रहे-तुम्हारी है। की ओर, एक साथ बहना चाहिए। इसे चेतना गुलाब के होने के प्रति पूर्णतया एक बार तुम यह जान जाओ, तो तुम गुरजिएफ आत्म-स्मरण कहते थे। सजग है। यदि ध्यान पूरा हो तो संसार दोनों ही बन गए। फिर गुलाब-जो ज्ञेय बुद्ध ने इसे सम्यक स्मृति विलीन हो जाता है, क्योंकि गुलाब पर है, और ज्ञाता-जो मन है, तुम्हारे दो पंख कहा-ठीक-ठीक स्मरण। उन्होंने कहा, जितना ध्यान केंद्रित किया जाएगा, शेष बन जाते हैं। फिर विषय और विषयी बस यदि तुम्हारा मन केवल एक ही बिंदु को सब कुछ उतनी ही दूर छूट जाएगा। संसार दो पंख होते हैं; तुम दोनों के केंद्र हो। वे जानता है तो सम्यक स्मृति में नहीं है। उसे विलीन हो जाता है; केवल गुलाब बच तुम्हारा विस्तार हैं। फिर संसार और दोनों का ज्ञान होना चाहिए। और तब एक रहता है। गुलाब ही संसार हो जाता है। परमात्मा दोनों ही तुम्हारा विस्तार हैं। तुम चमत्कार होता है। यदि तुम्हें ज्ञेय और यह पहला चरण है-गुलाब पर चित्त स्व-सत्ता के ठीक केंद्र पर पहुंच गए। और ज्ञाता दोनों का बोध हो, तो अचानक तुम को एकाग्र करना। यदि तुम गुलाब पर यह केंद्र बस एक साक्षी है।7।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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