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________________ आंतरिक केंद्रीकरण 7 व ने कहाः प्रत्येक वस्तु । अनुभूति के द्वारा ही जानी जाती है। अनुभूति के द्वारा ही आत्मा अंतस आकाश में प्रकाशित होती है। उस एक को ही ज्ञाता और ज्ञेय की भांति जानो। जब भी तुम कुछ जानते हो, वह अनुभूति के द्वारा ही जाना जाता है। ज्ञान की क्षमता के द्वारा ही कोई विषय तुम्हारे मन में पहुंचता है। तुम एक फूल को देखते स्व-सत्ता के केंद्र की ओर हो। तुम जानते हो वह गुलाब का फूल है। है। जानना तुम्हारी क्षमता है। ज्ञान इसी तो ज्ञान को तीन बिंदुओं में बांटा जा गुलाब का फूल बाहर है और तुम भीतर क्षमता के द्वारा अर्जित किया जाता है। सकता है। ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान। ज्ञान दो हो। तुमसे कोई चीज गुलाब के फूल तक लेकिन जानना दो चीजों को प्रगट करता बिंदुओं-विषयी और विषय के बीच पहुंचती है, तुमसे कोई चीज फूल पर है: ज्ञात और ज्ञाता। जब भी तुम किसी सेतु की भांति है। सामान्यतः तुम्हारा ज्ञान प्रक्षेपित होती है। तुम्हारे भीतर से कोई गुलाब के फूल को जानते हो और उस केवल ज्ञात को प्रकट करता है; ज्ञाता, ऊर्जा गति करती है, गुलाब पर आती है, ज्ञाता को, जानने वाले को भूल जाते हो जो जानने वाला अप्रकट रह जाता है। उसका रूप, रंग और गंध ग्रहण करती है, जान रहा रहा है तो तुम्हारा ज्ञान आधा है। सामान्यतः तुम्हारे ज्ञान में एक ही तीर होता और लौटकर तुम्हें खबर देती है कि यह इसलिए गुलाब को जानने में तीन चीजें है, जिसका लक्ष्य गुलाब की ओर तो होता गुलाब का फूल है। हुई: गुलाब का फूल-ज्ञेय; तुम्हारी ओर कभी भी नहीं होता। जब तक सारा ज्ञान, जो भी तुम जानते हो, जानने ज्ञाता-तुम, और दोनों के बीच का वह तुम्हारी ओर न मुड़ने लगे तब तक की क्षमता के द्वारा ही तुम पर प्रगट होता संबंध-ज्ञान। ज्ञान तुम्हें संसार के विषय में तो जानने 113
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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