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ध्यान की विधियां
रजिएफ ने एक कोने से इस विधि का प्रयोग कियाः सिर्फ यह स्मरण
रखना है कि मैं कौन हूं। रमण महर्षि ने इसका प्रयोग दूसरे कोने से किया। उन्होंने “मैं कौन हूं?" पूछने को, खोजने को एक ध्यान बना दिया। परन्तु मन जो भी उत्तर तुम्हें दे सकता है उस पर विश्वास मत करो। मन कहेगा, "क्या नासमझी की बात तुम पूछ रहे हो? तुम यह हो, कि तुम वह हो, पुरुष हो, कि स्त्री हो, कि तुम शिक्षित हो, अशिक्षित हो, अमीर या गरीब हो।" मन उत्तर देता रहेगा,
मैं कौन हूं?
पर पूछते ही चले जाओ। कोई उत्तर वही सम्यक क्षण है। अब तुम उत्तर के जाएगा। प्रश्न पूछने के साथ-साथ मन का स्वीकार मत करो क्योंकि मन के द्वारा दिए करीब आ रहे हो। जब कोई उत्तर नहीं अंतिम अंश भी विलीन हो गया क्योंकि सभी उत्तर झूठे हैं।
आता, तुम उत्तर के करीब हो क्योंकि मन वह प्रश्न भी मन का ही हिस्सा था। वे वे उत्तर तुम्हारे झूठे हिस्से से आते हैं। वे शांत हो रहा है-या, तुम मन से बहुत दूर उत्तर भी मन के थे और वह प्रश्न भी मन शब्दों से आते हैं, वे शास्त्रों से आते हैं, चले गए हो। जब कोई उत्तर नहीं होगा का था। दोनों विलीन हो गए, तो अब 'तुम संस्कारों से आते हैं, समाज से आते हैं, और तुम्हारे चारों ओर एक शून्य निर्मित हो हो। दूसरों से आते हैं। पूछते ही जाओ। “मैं जाएगा, तो तुम्हारा प्रश्न पूछना व्यर्थ इस प्रयोग को करो। तुम यदि लगन से कौन हूं?" के इस तीर को गहरे और गहरे मालूम होगा। किससे तुम पूछ रहे हो? लगे रहे तो हर संभावना है कि यह विधि प्रवेश करने दो। एक क्षण ऐसा आएगा उत्तर देने वाला अब कोई नहीं है। तुम्हें सत्य की झलक दे जाए-और सत्य जब कोई उत्तर नहीं आएगा।
अचानक, तुम्हारा प्रश्न पूछना भी बंद हो ही शाश्वत है। 6