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________________ ध्यान की विधियां व ने कहाः हे कमल रा नयनी, मधुर स्पर्शी! गाते हुए, देखते हुए, स्वाद लेते हुए यह बोध बनाए रहो कि मैं हूं, और शाश्वत जीवन को खोज लो। यह विधि कहती है कि कुछ भी करते हुए-गाते हुए, देखते हुए, स्वाद लेते हुए-सजग रहो कि 'तुम हो' और शाश्वत जीवन का आविष्कार कर लो:और अपने भीतर ही प्रवाह को, ऊर्जा अनुभव करो—'मैं हूं' को,शाश्वत जीवन को आविष्कृत कर लो। तीन या चार सैकेंड के लिए भी तुम अपना आत्म-स्मरण कोई मानसिक प्रक्रिया नहीं लेकिन हमें अपना ही बोध नहीं है। स्मरण नहीं रख सकते। तुम्हें लगेगा कि है। ऐसा नहीं कि तुम कहो, “हां, मैं हूं"। पश्चिम में गुरजिएफ ने आत्म-स्मरण तुम स्मरण कर रहे हो और अचानक तुम "हां, मैं हूँ" कहने से तुम चूक गए। “मैं का प्रयोग एक बुनियादी विधि के रूप में किसी अन्य विचार में गति कर चुकोगे। हूं", यह एक बौद्धिक बात हो गई, एक किया। वह आत्म-स्मरण इसी सूत्र से अगर यह विचार भी उठा कि “ठीक, मैं तो मानसिक प्रक्रिया हो गई। निकलता है। और गुरजिएफ की पूरी अपना स्मरण कर रहा हूं," तो तुम चूक यह अनुभव करो कि “मैं हूँ"। “मैं व्यवस्था इसी एक सूत्र पर आधारित है। गए, क्योंकि यह विचार आत्म-स्मरण हूँ"-इन शब्दों को नहीं अनुभव करना 'तुम कुछ भी करते हुए अपने को स्मरण नहीं है। है। उसे शब्द मत.दो। बस अनुभव करो रखो।' यह बहुत कठिन है। यह सरल आत्म-स्मरण में कोई विचार नहीं कि तुम हो। सोचो मत। अनुभव करो! मालूम होता है लेकिन तुम भूलते रहोगे। होगा; तुम बिलकुल रिक्त होओगे। और प्रयोग करो। यह कठिन है, लेकिन तुम 110
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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