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ध्यान की विधियां
लेकिन यह एक युक्ति थी। कोई कुछ है। मनोनाट्य में तुम केवल अभिनय करते तो वास्तविक और अवास्तविक के भेद को कहकर तुम्हारा अपमान कर देता और तुम हो, बस एक खेल खेलते हो।
जान नहीं सकता, विशेषतः कामवासना अशांत हो जाते। फिर हर कोई तुम्हारी प्रारंभ में वह केवल एक खेल ही होता में। यदि तुम उसकी कल्पना भी करो, तो अशांति में सहयोग देता और तुम पागल है, लेकिन देर-अबेर तुम आविष्ट हो जाते शरीर समझता है कि यह वास्तविक है। हो जाते। और जब तुम ठीक उस क्षण पर हो। और जब तुम आविष्ट हो जाते हो तो एक बार तुम कुछ करना शुरू कर दो, तो पहुंच जाते जहां तुममें विस्फोट हो सकता, · तुम्हारा मन सक्रिय होने लगता है, क्योंकि शरीर उसे वास्तविक समझ लेता है और तो गुरजिएफ चिल्लाता, “स्मरण रखो! तुम्हारा मन और तुम्हारा शरीर दोनों वास्तविक ढंग से ही व्यवहार करने लगता अनुद्विग्न बने रहो!"
स्वचालित हैं; वे अपने आप से चलते हैं। है। तुम भी मदद कर सकते हो। तुम्हारा तो यदि तुम मनोनाट्य में किसी मनोनाट्य इसी प्रकार की विधियों पर परिवार एक विद्यालय बन सकता है; तुम अभिनेता को अभिनय करते देखो, जो आधारित एक पद्धति है। तुम क्रोधित नहीं एक-दूसरे की मदद कर सकते हो। मित्र क्रोध की किसी परिस्थिति में वास्तव में ही होः केवल क्रोधित होने का अभिनय कर मिलकर एक विद्यालय बना सकते हैं और क्रोधित हो जाए, तो शायद तुम सोचो कि रहे हो-और फिर तुम उसमें प्रवेश कर एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं। तुम वह मात्र अभिनय ही कर रहा है, परंतु जाते हो। लेकिन मनोनाट्य सुंदर है क्योंकि अपने परिवार के साथ यह निर्णय ले सकते ऐसा नहीं है। हो सकता है वह वास्तव में तुम जानते हो कि तुम केवल अभिनय कर हो। पूरा परिवार यह निर्णय ले सकता है: ही क्रोधित हो गया हो; शायद अब यह रहे हो। और फिर परिधि पर क्रोध कि अब पिता के लिए, या मां के लिए बिलकुल भी अभिनय न हो। वह कामना वास्तविक हो जाता है, और ठीक उसके कोई परिस्थिति निर्मित करनी है, और तब से, उद्वेग से, भाव से, भावदशा से पीछे छिपे तुम उसे देख रहे हो। अब तुम पूरा परिवार परिस्थिति निर्मित करने में जुट आविष्ट हो गया हो, और यदि वह सच में जानते हो कि तुम उद्विग्न नहीं हो, लेकिन जाए। जब पिता या मां बिलकुल पागल ही ही आविष्ट हो जाए, केवल तभी उसका क्रोध मौजूद है, उद्वेग मौजूद है। उद्वेग है, हो जाए तो सभी हंसने लगे और कहें, अभिनय वास्तविक लगता है।
और फिर भी उद्वेग नहीं है। "बिलकुल शांत बने रहो।" तुम एक-दूसरे तुम्हारा शरीर तो नहीं जानता कि तुम दो शक्तियों के एकसाथ कार्य करने की की मदद कर सकते हो, और बड़ा अद्भुत अभिनय कर रहे हो या वास्तव में ही क्रोध यह अनुभूति तुम्हें एक अतिक्रमण दे देती अनुभव होता है। एक बार तुम किसी कर रहे हो। शायद तुमने अपने जीवन में है, तब फिर वास्तविक क्रोध में भी तुम उत्तप्त परिस्थिति में एक शीतल केंद्र को कभी देखा हो कि तुम क्रोध का अभिनय उसका अनुभव कर सकते हो। एक बार जान जाओ, तो तुम उसे भूल नहीं सकते। कर रहे थे, और तुम्हें पता भी नहीं चला तुम जान जाओ कि उसे कैसे अनुभव
और फिर किसी भी उत्तप्त परिस्थिति में कि कब क्रोध वास्तविक हो गया। या, तुम करना है, तो वास्तविक परिस्थितियों में भी तुम उसका स्मरण कर सकते हो, उसे फिर बस अभिनय कर रहे थे और कामवासना तुम उसका अनुभव कर सकते हो। इस से जीवंत कर सकते हो, उसे फिर से प्राप्त की कोई अनुभूति नहीं हो रही थी: तुम विधि का उपयोग करो। यह तुम्हारे जीवन कर सकते हो।
अपनी पत्नी के साथ, या अपनी प्रेमिका के को पूर्णतः बदल देगी। एक बार तुम जान पश्चिम में अब एक विधि, एक साथ, या अपने पति के साथ अभिनय कर जाओ कि कैसे अनुद्विग्न रहना है, तो मनोचिकित्सा विधि का उपयोग होता है। रहे थे, और अचानक यह वास्तविक हो संसार तुम्हारे लिए दुख नहीं रहता। फिर उसे कहते हैं "मनोनाट्य"। वह सहयोगी गया। शरीर ने बागडोर संभाल ली। वास्तव में ही कोई चीज तुम्हें किसी संशय है, और इसी प्रकार की विधि पर आधारित शरीर को तो छला जा सकता है। शरीर में नहीं डाल सकती, कोई चीज तुम्हें चोट
अपना पला
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