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________________ क्रोध का दमन भी मत करो। दमन करना सरल है; अभिव्यक्त करना भी सरल है। हम दोनों बातें कर सकते हैं, यदि परिस्थिति अनुमति दे। और यदि यह सुविधाजनक हो, और हमारे लिए खतरनाक न हो तो हम अभिव्यक्त कर देते हैं । यदि तुम दूसरे को नुकसान पहुंचा सको और दूसरा तुम्हें नुकसान न पहुंचा सके, तो तुम क्रोध को अभिव्यक्त कर दोगे । यदि यह खतरनाक हो, यदि दूसरा तुम्हें अधिक नुकसान पहुंचा सकता हो, यदि तुम्हारा बॉस या जिस पर भी तुम क्रोधित हो, वह ज्यादा मजबूत है, तो तुम क्रोध को दबा लोगे। अभिव्यक्ति और दमन दोनों सरल हैं: साक्षित्व कठिन है। साक्षित्व दोनों ही नहीं है । वह न तो दमन है, न अभिव्यक्ति है। वह अभिव्यक्ति इसलिए नहीं है क्योंकि तुम क्रोध को क्रोध के विषय पर अभिव्यक्त नहीं कर रहे हो। और न ही उसे दबा रहे हो। तुम उसे अभिव्यक्त होने दे रहे हो – शून्य में अभिव्यक्त होने दे रहे . हो। तुम उस पर ध्यान कर रहे हो। दर्पण के सामने खड़े हो जाओ और अपने क्रोध को अभिव्यक्त करो-और उसके साक्षी हो रहो। तुम अकेले हो, तो उस पर ध्यान कर सकते हो। जो भी करना चाहते हो करो, लेकिन शून्य में। यदि तुम किसी को पीटना चाहते थे तो रिक्त आकाश को पीट लो । यदि क्रोधित होना चाहते हो, तो क्रोधित हो लो; यदि चीखना चाहते हो, तो चीख लो। लेकिन अकेले ही करो, और स्वयं को उस बिंदु की भांति 107 आंतरिक केंद्रीकरण स्मरण में रखो जो यह सब, यह सारा नाटक देख रहा है । फिर यह एक मनोनाट्य बन जाता है, और तुम उस पर हंस सकते हो। और वह तुम्हारे लिए एक गहन रेचन बन जाएगा। बाद में तुम्हें लगेगा कि तुमने उससे छुटकारा पा लिया — और न केवल छुटकारा पा लिया वरन तुमने उससे कुछ पाया भी। तुम प्रौढ़ हो गए होओगे, तुम्हारा विकास हो गया होगा । और अब तुम्हें पता होगा कि जब तुम क्रोध में भी थे तो तुम्हारे भीतर एक केंद्र था जो शांत था। अब इस केंद्र को उघाड़ने का और और प्रयास करो, और कामना में उसे उघाड़ लेना सरल है। यह विधि बहुत उपयोगी हो सकती है, और तुम्हें इससे बहुत लाभ हो सकता है। लेकिन यह कठिन होगा क्योंकि जब तुम उद्विग्न होते हो तो सबकुछ भूल जाते हो । शायद तुम भूल ही जाओ कि तुम्हें ध्यान करना है । फिर इस प्रकार करके देखो : उस क्षण की प्रतीक्षा मत करो जब क्रोध उठे। उस क्षण की प्रतीक्षा मत करो! बस अपने कमरे का द्वार बंद कर लो, और क्रोध के किसी पूर्व अनुभव के विषय में सोचो जब तुम पागल हो गए थे। उसे याद करो, उसे फिर से दोहराओ। वह तुम्हारे लिए सरल होगा। उसे फिर से दोहराओ, फिर से करो, फिर से जिओ । उसे केवल स्मरण ही मत करो फिर से जिओ । स्मरण करो कि किसी ने तुम्हारा अपमान किया था, और उसने क्या कहा था, और कैसे तुमने प्रतिक्रिया की थी। फिर से प्रतिक्रिया करो; उसे फिर से दोहराओ । अतीत की किसी घटना का इस प्रकार फिर से अभिनय करना बहुत काम का होगा। हर किसी के मन में खरोंचें हैं, अनभरे घाव हैं। यदि तुम उन्हें फिर से दोहरा कर अभिनीत कर लो तो निर्धार हो जाओगे । यदि तुम अपने अतीत में जाकर और ऐसा कुछ कर सको जो अधूरा रह गया था, तो तुम अपने अतीत से मुक्त हो जाओगे । तुम्हारा मन ज्यादा ताजा हो जाएगा; धूल झड़ जाएगी। अपने अतीत की ऐसी किसी चीज का स्मरण करो जो तुम्हें लगता है कि अधूरी रह गई थी। किसी को तुम मार डालना चाहते थे, किसी को तुम प्रेम करना चाहते थे, तुम 'यह' चाहते थे और 'वह' चाहते थे, और वह सब अधूरा ही रह गया। वह अधूरी चीज मन पर बादलों की तरह मंडराती रहती है। “ तीव्र कामना की मनोदशा में अनुद्विग्न रहो" : गुरजिएफ ने इस विधि का बहुत उपयोग किया। वह परिस्थितियां निर्मित कर देता था, लेकिन परिस्थितियां निर्मित करने के लिए एक ध्यान - विद्यालय की जरूरत है। तुम अकेले यह काम नहीं कर सकते । फोन्टेनब्लियु में गुरजिएफ का एक छोटा-सा ध्यान - विद्यालय था, और वह एक कठोर सद्गुरु था। वह जानता था कि कैसे परिस्थितियां निर्मित करनी हैं। तुम किसी कमरे में प्रवेश करते जहां कुछ लोग बैठे हैं, और कुछ ऐसी बात कर दी जाती कि तुम क्रोधित हो जाते। और यह इतने स्वाभाविक रूप से किया जाता कि तुम कभी कल्पना भी न कर पाते कि तुम्हारे लिए एक परिस्थिति निर्मित की गई है।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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