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आंतरिक केंद्रीकरण
व ने कहाः तीव्र कामना की मनोदशा में अनुद्विग्न
रहो।
जब कामना तुम्हें पकड़ती है, तुम उद्विग्न हो जाते हो। निश्चित ही, यह स्वाभाविक है। कामना तुम्हें पकड़ती है तो तुम्हारा मन डोलने लगता है और सतह पर बहुत-सी लहरें दौड़ने लगती हैं। कामना तुम्हें खींचकर कहीं भविष्य में ले
झंझावात का केंद्र
जाती है; अतीत तुम्हें कहीं भविष्य में ले क्षणों में! तुम्हें कुछ प्रयोग करने होंगे; तभी अब तुम्हारे भीतर एक बिंदु है जो उद्विग्न जाता है। तुम उद्विग्न हो जाते हो तुम चैन तुम्हें इसका अभिप्राय समझ आएगा। तुम नहीं है। में न रहे। इसलिए कामना एक व्याधि है, क्रोध में होः क्रोध ने तुम्हें पकड़ लिया है। तुम्हें बोध रहेगा कि परिधि पर क्रोध है। एक तनाव है।
तुम क्षणिक रूप से पागल हो गए, बुखार की तरह वह मौजूद है। परिधि कांप यह सूत्र कहता है, “तीव्र कामना की आविष्ट हो गए : तुम होश में नहीं रहे। रही है। परिधि अशांत है, लेकिन तुम मनोदशा में अनुद्विग्न रहो।" लेकिन अचानक स्मरण करो कि अनुद्विग्न रहना उसको देख सकते हो। यदि तुम उसको अनुद्विग्न कैसे रहा जाए? कामना का अर्थ __ है-जैसे कि तुम वस्त्र उतार रहे हो। देख सको, तो शांत हो जाओगे। उसके ही उद्वेग है। फिर अनुद्विग्न कैसे रहा भीतर, नग्न हो जाओ-क्रोध को उतारकर साक्षी हो जाओ और तुम शांत हो जाओगे। जाए-और वह भी कामना के तीव्रतम नग्न हो जाओ। क्रोध तो रहेगा, लेकिन यह शांत बिंदु ही तुम्हारा 'मौलिक मन' है।
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