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________________ हृदय को खोलना विधियों में से है, सरल है और तात्कालिक हृदय में पीने की अपेक्षा अपने ही दुख से द्वार बंद कर लो। पहले दुख को जितनी परिणाम लाती है। इसे आज ही करो, और शुरू करो। गहरे सागर में इतनी जल्दी मत सघनता से हो सके अनुभव करो। पीड़ा देखो। 'जाओ; पहले उथले पानी में तैरना सीखो। को महसूस करो। किसी ने तुम्हारा और यदि तुम एकदम से ही पूरे अस्तित्व अपमान किया है। अब, पीड़ा से बचने का स्वयं से शुरू करो के दुख लेने लगते हो तो वह मात्र सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि तुम काल्पनिक प्रयोग ही रह जाएगा। वह जाकर उसका अपमान करो, ताकि तुम वास्तविक नहीं होगा, वह वास्तविक नहीं उसके साथ व्यस्त हो जाओ। यह ध्यान थतीशा कहते हैं : ग्रहण करने की हो सकता। वह शाब्दिक ही होगा। नहीं है।। क्षमता का विकास स्वयं से ही तुम स्वयं को कह सकते हो, “हां, मैं यदि किसी ने तुम्हारा अपमान किया है, शुरू करो। पूरे संसार के दुख ले रहा हूं" लेकिन पूरे तो उसके प्रति धन्यवाद से भरो कि उसने संसार के दुखों के बारे में तुम जानते क्या तुम्हें एक गहरे घाव को महसूस करने का अतीशा कहते हैं : इससे पहले कि तुम ।। हो? तुमने तो अभी अपने दुख का भी अवसर दिया। उसने तुम्हारे एक गहरे घाव यह प्रयोग पूरे अस्तित्व के साथ कर सको, अनुभव नहीं किया है। को खोल दिया। हो सकता है वह घाव तुम्हें पहले स्वयं से ही शुरू करना होगा। हम अपने दुख को ही टालते रहते हैं। तुम्हारे जीवन भर में झेले गए अपमानों से यह अंतर्विकास के बुनियादी रहस्यों में से तुम यदि दुखी होते हो तो रेडियो या निर्मित हुआ हो। हो सकता है वह सारी एक है। दूसरों के साथ तुम वह कर ही नहीं टेलीविजन चला लेते हो और व्यस्त हो पीड़ा का कारण न हो, वह बस एक सकते जो तुमने पहले स्वयं के साथ न कर जाते हो। तुम अखबार पढ़ने लगते हो प्रक्रिया शुरू होने के लिए निमित्त ही बना लिया हो। तुम दूसरों को तभी पीड़ा दे ताकि अपने दुख को भूल सको या तुम हो। सकते हो यदि स्वयं को पीड़ा देते हो, तुम फिल्म देखने चले जाते हो, या अपनी बस अपना कमरा बंद कर लो, मौन दूसरों के लिए तभी एक 'सिरदर्द बन प्रेमिका के पास, या अपने प्रेमी के पास बैठ जाओ, उस व्यक्ति के प्रति क्रोध मत सकते हो जब तुम स्वयं अपने लिए एक चले जाते हो। तुम क्लब चले जाते हो, रखो बल्कि वह भाव जो तुममें उठ रहा है 'सिरदर्द' होओ, और दूसरों के लिए बाजार में खरीददारी करने चले जाते हो, उसके प्रति सजग हो रहो-वह पीड़ा का आशीष भी तुम तभी बन सकते हो यदि ताकि बस किसी तरह अपने को अपने भाव कि तुम्हें अस्वीकृत कर दिया गया, तुम स्वयं के लिए एक आशीष हो। आप से ही दूर रख सको, ताकि तुम्हें घाव कि तुम्हें अपमानित कर दिया गया। और दूसरों के साथ तुम जो भी कर सकते को देखना न पड़े, ताकि तुम्हें यह न देखना फिर तुम चकित होओगे कि अब एक वही हो, वह जरूर तुमने पहले अपने साथ पड़े कि भीतर कितना दुखता है। व्यक्ति नहीं है वरन तुम्हारी स्मृति में वे किया होगा, क्योंकि वही तो तुम बांट लोग अपने आप को ही टालते चले सभी पुरुष और सभी स्त्रियां और वे सभी सकते हो। तुम वही बांट सकते हो जो जाते हैं। दुख के बारे में तुम जानते क्या लोग आने लगेंगे जिन्होंने कभी भी तुम्हारा तुम्हारे पास है; जो तुम्हारे पास नहीं है वह हो? तुम पूरे अस्तित्व के दुख की सोच भी अपमान किया होगा। तुम नहीं बांट सकते। अतीशा कहते हैं: कैसे सकते हो? तुम उन्हें न केवल स्मरण करने लगोगे "ग्रहण करने की क्षमता का विकास स्वयं पहले तुम्हें स्वयं से ही शुरू करना वरन तुम उन्हें फिर से जीने लगोगे। तुम से ही शुरू करो।" होगा। यदि तुम दुखी हो रहे हो, तो इसे एक प्रकार के गहन ग्रंथि-विसर्जन संसार के सारे दुखों को लेकर अपने एक ध्यान बन जाने दो। मौन बैठ जाओ, (प्राइमल) में चले जाओगे।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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