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________________ छुओ, या किसी मित्र को, या किसी वृक्ष, किसी फूल को छुओ, या धरती को ही छुओ। अपनी आंखें बंद कर लो और अपने हृदय और धरती के बीच, या प्रेमिका के बीच एक आदान-प्रदान अनुभव करो। बस यह अनुभव करो कि तुम्हारा हाथ पृथ्वी को छूने के लिए आगे बढ़ा हुआ तुम्हारा हृदय है। स्पर्श की अनुभूति को हृदय से संबद्ध हो जाने दो। जब संगीत को सुनो, तो उसे सिर से मत सुनो। अपने सिर को भूल जाओ और महसूस करो कि तुम सिरविहीन हो । सिर है ही नहीं। यह अच्छा होगा कि तुम अपने शयनकक्ष में बिना सिर की अपनी कोई तस्वीर लगा लो। उसे एकाग्र होकर देखो: तुम बिना सिर के हो; सिर को वापस प्रवेश ही मत करने दो। संगीत सुनो, तो हृदय से सुनो। अनुभव करो कि संगीत तुम्हारे हृदय पर पहुंच रहा है; अपने हृदय को उससे स्पंदित होने दो। अपनी इंद्रियों को हृदय से जुड़ जाने दो, बुद्धि से नहीं । हर इंद्रिय के साथ यह प्रयोग करो, और यह अनुभव करो कि हर इंद्रिय हृदय पर पहुंच रही है और उसमें विलीन हो रही है। “हे भगवती, जब इंद्रियां हृदय में 95 हृदय को खोलना विलीन हो जाएं तब कमल के केंद्र पर पहुंचो।” हृदय ही कमल है। हर इंद्रिय कमल की पांखुरी मात्र है। पहले हर इंद्रिय को हृदय से जोड़ने का प्रयास करो। दूसरे, सदा यह सोचो कि हर इंद्रिय गहरे में जाकर हृदय में पहुंच जाती है और उसमें विलीन हो जाती है। जब ये दो बातें हो जाएं, केवल तभी तुम्हारी इंद्रियां तुम्हें सहयोग देना शुरू करेंगी : वे तुम्हें हृदय तक ले जाएंगी, और तुम्हारा हृदय एक कमल बन जाएगा। यह हृदय - कमल तुम्हें एक केंद्रीकरण देगा। एक बार तुम हृदय के केंद्र को जान जाओ तो नाभि-केंद्र पर उतर आना बहुत सरल हो जाता है । फिर यह बहुत ही सरल है ! वास्तव में, यह सूत्र इसका उल्लेख नहीं करता; उसकी जरूरत भी नहीं है। यदि तुम वास्तव में ही पूरी तरह हृदय में लीन हो जाओ, और बुद्धि कार्य करना बंद कर दे, तो तुम नीचे उतर आओगे। हृदय से नाभि की ओर जाने का द्वार खुल जाता है । बुद्धि से नाभि की ओर जा पाना ही कठिन है । या, यदि तुम बुद्धि और हृदय दोनों के बीच में हो, तो भी नाभि की ओर जाना कठिन है। एक बार तुम नाभि में लीन हो जाओ तो अचानक तुम हृदय के पार चले जाते हो – तुम नाभि केंद्र पर उतर आए जो कि मूलभूत है— मौलिक है। यदि तुम्हें लगे कि तुम हृदयोन्मुख व्यक्ति हो, तो यह विधि तुम्हारे लिए अत्यंत सहायक होगी। परंतु भली-भांति जान लो कि हर व्यक्ति अपने आपको यही धोखा देने का प्रयास कर रहा है कि वह हृदयोन्मुख है। हर कोई यही महसूस करना चाहता है कि वह बड़ा प्रेमपूर्ण और भावात्मक व्यक्ति है, क्योंकि प्रेम ऐसी बुनियादी जरूरत है कि जब किसी को लगे कि उसमें प्रेम नहीं है, उसका हृदय प्रेमपूर्ण नहीं है तो वह चैन से नहीं बैठ सकता। तो हर व्यक्ति सोचता और मानता चला जाता है, परंतु मान्यता काम नहीं देगी। बिलकुल निरपेक्ष होकर देखो, जैसे किसी और को देख रहे हो, और तभी निर्णय लो— क्योंकि स्वयं को धोखा देने की कोई जरूरत नहीं है और उससे कोई लाभ भी न होगा। यदि तुम स्वयं को धोखा दे भी लो, तो विधि को धोखा नहीं दे सकते। तो जब तुम इस विधि को करोगे, तब महसूस करोगे कि कुछ भी नहीं हो रहा है। 5
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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