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________________ हृदय को खोलना इसे कर सकते हो; सुबह जैसे ही तुम्हें लगे स्वयं ही उसमें गहरे चले जाओगे। और हर संबंध में तुम कुछ योगदान देते हो। कि तुम जाग गए तो भी इसे कर सकते हो। सुबह अत्यंत सुंदर अनुभव होता है क्योंकि यदि तुम्हारा योगदान न हो, तो लोग पहले यह प्रयोग करो और फिर उठो, दस तुम ताजे और युवा हो गए और केंद्र से अलग ढंग से व्यवहार करते हैं क्योंकि मिनट भी पर्याप्त होंगे-या रात सोने से परिधि पर लौटती हुई पूरी ऊर्जा स्पंदित हो उन्हें लगता है कि तुम एक भिन्न व्यक्ति पहले दस मिनट कर लो। संसार को रही है। हो। शायद उन्हें इसका बोध भी न हो। अवास्तविक कर लो, और तुम्हारी नींद जिस क्षण तुम्हें बोध हो कि नींद समाप्त लेकिन जब तुम शांति से भर जाते हो तो इतनी गहरी हो जाएगी-शायद इस प्रकार हो गई, पहले अपनी आंखें मत खोलो। सभी तुमसे अलग ढंग से व्यवहार करते तुम पहले कभी सोए ही न होओ। यदि पहले यह प्रयोग करो; पूरी रात सोने के हैं। वे अधिक प्रेमपूर्ण और सहृदय हो सोने से पहले संसार अवास्तविक हो जाए बाद शरीर विश्रामपूर्ण हो गया है, ताजा जाएंगे, कम प्रतिरोधी होंगे, अधिक खुल तो स्वप्न कम होंगे क्योंकि यदि संसार ही और जीवंत अनुभव कर रहा है, तो दस जाएंगे, करीब आ जाएंगे। तुममें चुंबक स्वप्न हो जाए, तो स्वप्न जारी नहीं रह मिनट के लिए यह प्रयोग करो, तभी अपनी आ गया। शांति चुंबक है। जब तुम शांत सकते। और यदि संसार अवास्तविक हो, आंखें खोलो। शिथिल हो जाओ। तुम होते हो तो लोग तुम्हारे करीब आ जाते हैं; तो तुम बिलकुल विश्रांत हो जाते हो, . पहले से ही शिथिल हो; इसमें बहुत समय जब तुम अशांत होते हो तो सभी विकर्षित अन्यथा संसार की वास्तविकता तुम पर नहीं लगेगा। बस शिथिल हो जाओ। होते हैं। यह घटना इतनी ठोस है कि तुम आक्रमण करती रहती है, चोट करती रहती अपनी चेतना को दोनों कांखों के बीच हृदय सरलता से इसे देख सकते हो। जब भी पर ले आओः उसे गहन शांति से भरा तुम शांत होते हो तो तुम्हें लगता है कि सब जहां तक मैं जानता हूं—यह विधि मैंने अनुभव करो। दस मिनट के लिए उसी तुम्हारे समीप आना चाहते हैं क्योंकि वह ऐसे कई लोगों को सुझाई है जो अनिद्रा से शांति में रहो, फिर अपनी आंखें खोलो। शांति विकिरणित होती है, वह तुम्हारे पीड़ित हैं और यह गहन रूप से कारगर और संसार बिलकुल भिन्न नजर आएगा इर्द-गिर्द की तरंग बन जाती है। शांति के है। यदि संसार अवास्तविक हो, तो तनाव क्योंकि वह शांति तुम्हारी आंखों से भी वर्तुल तुम्हारे चारों ओर घूमते हैं और जो तिरोहित हो जाते हैं। और यदि तुम परिधि विकिरणित होगी। और सारे दिन तुम भिन्न भी पास आता है वह तुम्हारे और करीब से केंद्र की ओर बढ़ सको, तो तुम निद्रा ही अनुभव करोगे न केवल भिन्न होना चाहता है-जैसे वृक्ष की छाया • की गहन अवस्था में प्रवेश कर अनुभव करोगे, बल्कि तुम्हें लगेगा कि देखकर तुम्हें लगता है उसके नीचे जाकर जाओगे-इससे पहले कि नींद आए तुम लोग भी अलग ढंग से व्यवहार कर रहे हैं। विश्राम करें। 4
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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