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हृदय को खोलना
तब उसे शिथिल करना सरल होता है। उस पर बहुत तूल मत दो। बस अनुभव रही है। हृदय शांति को विकीर्ण करता है। बीच की अवस्था में विश्रांत होना बहुत करो कि शरीर शिथिल हो गया है, फिर तभी तो संसार भर में सभी लोगों कठिन होता है क्योंकि तुम उसे महसूस ही शरीर को भूल जाओ। क्योंकि वास्तव में ने-चाहे वे किसी वंश, धर्म, देश के हों, नहीं कर पाते।
शरीर को स्मरण रखना भी एक प्रकार का सुसंस्कृत हों कि असंस्कृत हों, किसी एक अति से दूसरी अति पर जाना बहुत तनाव है। इसीलिए मैं कहता हूं कि उसको जाति के हों-यही अनुभव किया है कि सरल होता है क्योंकि एक अति ही दूसरी बहुत तूल मत दो। शरीर को शिथिल करो प्रेम कहीं हृदय के पास से उठता है। अति पर जाने के लिए परिस्थिति पैदा और उसको भूल जाओ। उसको भूल जाना विज्ञान की ओर से इसका कोई स्पष्टीकरण करती है। तो यदि तुम्हें चेहरे में कोई तनाव ही विश्राम है, क्योंकि जब भी तुम किसी नहीं है। महसूस हो तो चेहरे की मांसपेशियों को अंग का बहुत स्मरण करते हो, तो वह तो जब भी तुम प्रेम के विषय में सोचते जितना खींच सको खींचो, तनाव पैदा करो स्मरण मात्र ही शरीर में तनाव ले आता है। हो, तुम्हें हृदय का खयाल आता है।
और उसे एक शिखर पर ले आओ। उसे फिर अपनी आंखें बंद कर लो और वास्तव में, जब भी तुम प्रेम में होते हो तो ऐसे बिंदु पर ले आओ जहां तुम्हें लगे कि दोनों कांखों के मध्य में, हृदय क्षेत्र को, तुम विश्रामपूर्ण होते हो, और क्योंकि तुम अब और तनाव संभव ही नहीं है—फिर वक्षस्थल को अनुभव करो। पहले उसे विश्रामपूर्ण होते हो इसलिए एक निश्चित अचानक ढीला छोड़ दो। तो देख लो कि अनुभव करोः ठीक दोनों कांखों के मध्य शांति से भर जाते हो। और वह शांति हृदय शरीर के सभी हिस्से, सभी अंग विश्रांत हो में अपना पूरा होश, अपनी पूरी सजगता से उठती है। इसीलिए शांति और प्रेम गए हैं।
ले आओ। पूरे शरीर को भूल जाओ, बस आपस में जुड़ गए हैं, संबद्ध हो गए हैं। चेहरे की मांसपेशियों पर विशेष ध्यान दो कांखों के बीच हृदय क्षेत्र को अनुभव जब भी तुम प्रेम में होते हो तो शांत होते दो, क्योंकि वे तुम्हारे नब्बे प्रतिशत तनावों करो, और उसे अपार शांति से भरा हुआ हो; और जब प्रेम में नहीं होते तो अशांत को ढोती हैं-बाकी शरीर में दस प्रतिशत महसूस करो।
होते हो। शांति के कारण हृदय प्रेम से तनाव ही हैं, क्योंकि सब तनाव तुम्हारे जिस क्षण शरीर शिथिल होता है, शांति संबद्ध हो गया है। मस्तिष्क में ही हैं इसलिए तुम्हारा चेहरा स्वतः ही तुम्हारे हृदय में घटित हो जाती है। तो तुम दो काम कर सकते होः या तो उनका भंडारघर बन जाता है। तो अपने हृदय शांत, शिथिल, लयबद्ध हो जाता है। प्रेम की खोज करो, तब तुम कभी-कभी चेहरे को जितना हो सके खींचो, इसमें और जब तुम पूरे शरीर को भूल कर अपना शांति का अनुभव करोगे। लेकिन मार्ग शरमाओ मत। उसे पूरी तरह संतापयुक्त, पूरा होश बस वक्षस्थल पर ही ले आते हो खतरनाक है, क्योंकि वह दूसरा व्यक्ति विषादग्रस्त कर लो और फिर अचानक और उसे शांति से भरा हुआ महसूस करते जिसे तुम प्रेम करते हो वह तुमसे अधिक ढीला छोड़ दो। पांच मिनट यह करो ताकि हो तो तत्क्षण अपार शांति घटित होगी। महत्वपूर्ण हो गया। दूसरा तो दूसरा ही है, तुम महसूस कर सको कि अब पूरा शरीर, शरीर में दो क्षेत्र हैं, दो ऐसे निश्चित और अब तुम एक प्रकार से आश्रित हो रहे प्रत्येक अंग विश्रांत हो गया है। केंद्र हैं जहां सजग रूप से निश्चित हो। तो प्रेम तुम्हें कभी-कभी तो शांति
तुम इसे बिस्तर पर लेटे-लेटे भी कर भावदशाएं निर्मित की जा सकती हैं। दो देगा, परंतु हमेशा नहीं। बहुत से उपद्रव सकते हो, और बैठ कर भी-जैसा भी कांखों के बीच में हृदय का केंद्र है, और होंगे, दुख और विषाद के बहुत से क्षण तुम्हें लगे कि तुम्हारे लिए सरल है। हृदय का केंद्र उस सारी शांति का स्रोत है होंगे, क्योंकि दूसरा प्रवेश कर गया और
दूसरी बातः जब तुम्हें लगे कि शरीर जो तुम्हें घटती है-जब भी घटे। जब भी जहां भी दूसरा प्रवेश कर जाता है वहां कुछ किसी सहज मुद्रा में आ गया है, तो फिर तुम शांत होते हो, वह शांति हृदय से आ उपद्रव तो होंगे ही क्योंकि दूसरे से तुम