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हृदय को खोलना
बुद्धि से नीचे उतरना ही पड़ेगा। दृष्टिकोण निर्मित कर रहे हैं। जितने ही ऐक्य नहीं: बस अणु और अणु और
तो इस ध्यान के लिए अधिकाधिक तुम्हारे संबंध प्रेम पर आधारित होंगे, उतना अणु। हृदय एकता का अनुभव देता है। प्रेमपूर्ण होने का प्रयास करो। और जब ही तुम्हारा हृदय केंद्र सक्रिय होगा। वह जोड़ता जाता है और परम संश्लेषण मैं कहता हूं अधिक प्रेमपूर्ण हो जाओ, तो वह कार्य करने लगेगा, तुम संसार को होता है परमात्मा। यदि तुम हृदय से देख मेरा अर्थ है-अपने संबंध की गुणवत्ता भिन्न आंखों से देखोगेः क्योंकि हृदय के सको, तो पूरा ब्रह्मांड एक ही नजर आता बदल डालोः उसे प्रेम पर आधारित होने पास संसार को देखने का अपना अलग है। वह एकता ही परमात्मा है। दो। न केवल अपनी पत्नी के या बच्चे ढंग है। मन उस प्रकार कभी भी नहीं देख यही कारण है कि विज्ञान कभी भी के या मित्र के प्रति वरन जीवन मात्र के सकता : मन के लिए यह असंभव ही है। परमात्मा को नहीं खोज सकता। यह प्रति प्रेमपूर्ण हो जाओ। इसीलिए तो बुद्ध मन तो केवल विश्लेषण कर सकता है। असंभव है, क्योंकि विज्ञान जिस विधि का
और महावीर अहिंसा पर बोलेः जीवन हृदय संश्लेषण करता है; मन केवल उपयोग करता है वह परम ऐक्य तक नहीं के प्रति एक प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण पैदा विभक्त और विभाजित कर सकता है। पहुंच सकता। विज्ञान की विधि है तर्क, करने के लिए।
मन एक विभाजक है। केवल हृदय ही विश्लेषण, विभाजन। तो विज्ञान अणुओं, जब महावीर चलते हैं, कदम रखते हैं, संयुक्त करता है।
परमाणुओं और इलेक्ट्रॉन तक पहुंच जाता तो इतने सजग रहते हैं कि एक चींटी भी न जब तुम हृदय से देखते हो तो पूरा है, और वे भी विभाजित होते चले जाएंगे। मर जाए। क्यों? वास्तव में, चींटी का ब्रह्मांड एक संयुक्त इकाई की भांति दिखाई वे कभी भी समग्रता की जीवंत इकाई तक प्रश्न नहीं है। महावीर बुद्धि से हृदय पर पड़ता है। जब तुम मन से देखते हो तो नहीं पहुंच पाएंगे। समग्र को बुद्धि से देख उतर रहे हैं, जीवन मात्र के प्रति प्रेमपूर्ण सारा संसार आणविक हो जाता है। कोई पाना असंभव है। 2