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________________ ध्यान की विधियां बार तुम हृदय पर आए। सिरविहीन होकर द्वीपों की तरह कहीं-कहीं मिल जाते हैं। अंतरंग प्रसंग बन जाता है। जब वह घर से चलो। ध्यान के लिए बैठो, अपनी आंखें भौगोलिक रूप से पूरब समाप्त हो गया बाहर निकलता है, तो अपने हृदय से भी बंद करो और बस यही अनुभव करो कि है। अब तो पूरा विश्व ही पाश्चात्य है। बाहर निकल जाता है। संसार में वह बुद्धि सिर नहीं है। महसूस करो, “मेरा सिर सिरविहीन होने का प्रयास करो। अपने से जीता है और हृदय पर तभी उतरता है विलीन हो गया है।" प्रारंभ में तो यह 'जैसे स्नानगृह में दर्पण के सामने खड़े होकर जब प्रेम कर रहा होता है। लेकिन यह कि' ही होगा, परंतु धीरे-धीरे तुम्हें लगेगा ___ ध्यान करो। अपनी आंखों में गहरे झांको बहुत कठिन है। यह बहुत ही कंठिन है, कि सिर सच में ही विलीन हो गया है। और महसूस करो कि तुम हृदय से देख रहे और साधारणतः ऐसा होता ही नहीं। और जब तुम्हें लगेगा कि सिर विलीन हो हो। धीरे-धीरे हृदय-केंद्र सक्रिय हो कलकत्ता में मैं एक मित्र के घर ठहरा गया है, तो तुम्हारा केंद्र हृदय पर आ जाएगा। और जब हृदय सक्रिय हो जाता हुआ था, और वह मित्र हाइकोर्ट के एक जाएगा-तत्क्षण! तुम संसार को हृदय से है, तो तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व, पूरी संरचना, जज थे। उनकी पत्नी ने मुझसे कहा, "बस देखोगे, बुद्धि से नहीं। पूरे तौर-तरीके को बदल डालता है, एक ही समस्या मैं आपको कहना चाहती - जब पहली बार पश्चिम के लोग जापान क्योंकि हृदय का अपना अलग मार्ग है। हूं। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?" पहुंचे, तो वे विश्वास नहीं कर पाए कि तो पहली बातः सिरविहीन होने का तो मैंने पूछा, “समस्या क्या है?" जापानी लोग पारंपरिक रूप में सदियों से प्रयास करो। दूसरे, अधिक प्रेमपूर्ण होओ, वह बोली, “मेरे पति आपके मित्र हैं। वे यह सोचते रहे हैं कि वे पेट से सोचते हैं। क्योंकि प्रेम बुद्धि से नहीं हो सकता। आपको प्रेम करते हैं, और आपका आदर यदि तुम किसी जापानी बच्चे से अधिक प्रेमपूर्ण हो जाओ! यही कारण है, करते हैं, यदि आप उनसे कुछ कहें तो पूछो-यदि वह पाश्चात्य ढंग से शिक्षित जब कोई प्रेम में होता है, उसकी बुद्धि छूट शायद कुछ लाभ हो।" नहीं हुआ है कि "तुम्हारा सोच-विचार जाती है। लोग कहते हैं कि वह पागल हो तो मैंने पूछा, “क्या कहना है? मुझे कहां होता है?" तो वह अपने पेट की ओर गया है। यदि तुम प्रेम में पड़ो और पागल बताओ।" । इशारा करेगा। न हो जाओ, तो तुम वास्तव में प्रेम में नहीं वह बोली, “वे बिस्तर में भी हाइकोर्ट के सदियां और सदियां बीत गई हैं, और हो। बुद्धि तो खोनी ही होगी। यदि बुद्धि जज बने रहते हैं। मुझे तो किसी प्रेमी, जापान सिर के बिना जीता रहा है। यह अप्रभावित रहे, और यथावत कार्य करती किसी मित्र, किसी पति का कभी अनुभव मात्र एक धारणा है। यदि मैं तुमसे पूछं, रहे, तो प्रेम संभव नहीं है, क्योंकि प्रेम के ही नहीं हुआ। वे दिन में चौबीस घंटे "तुम्हारा सोच-विचार कहां चल रहा है?" लिए तो हृदय के सक्रिय होने की जरूरत हाइकोर्ट के जज बने रहते हैं। तो तुम सिर की ओर इशारा करोगे, लेकिन है-बुद्धि की नहीं। वह हृदय का कार्य यह कठिन हैः अपने ऊंचे स्थान से जापानी व्यक्ति पेट की ओर इशारा करेगा, है। नीचे उतर आना कठिन है। वह एक जड़ सिर की ओर नहीं-यह भी एक कारण है ऐसा होता है, जब कोई बहुत बौद्धिक दृष्टिकोण बन जाता है। यदि तुम एक कि जापानी मन इतना स्थिर, शांत और व्यक्ति प्रेम में पड़ता है, तब वह बुद्ध हो व्यापारी हो, तो बिस्तर में भी व्यापारी ही निश्चल है। जाता है। उसे स्वयं ही लगता है कि वह बने रहोगे। भीतर दो व्यक्तियों को एक अब वह भी भंग हो गया है क्योंकि क्या बेवकूफी, क्या मूढ़ता कर रहा है। वह साथ रख पाना कठिन है, और यह सरल पश्चिम हर चीज पर फैल गया है। अब कर क्या रहा है! फिर वह अपने जीवन के नहीं है कि अपने तौर-तरीके तुम जब पूरब कहीं है ही नहीं। पूरब तो अब कुछ दो हिस्से बना लेता है; वह एक विभाजन चाहो, तत्क्षण पूरी तरह बदल डालो। यह ही इक्का-दुक्का लोगों में बच रहा है जो खड़ा कर लेता है। हृदय एक मौन और कठिन है, लेकिन यदि तुम प्रेम में हो तो
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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