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________________ हृदय को खोलना "हला सूत्रः सिरविहीन होने का प्रयास करो। स्वयं के सिरविहीन होने की कल्पना करो; सिरविहीन होकर ही चलो। सुनने में यह अजीब लगता है, परंतु यह बहुत ही महत्वपूर्ण साधनाओं में से एक है। इसका प्रयोग करो, तब तुम जानोगे। चलो, और यह अनुभव करो जैसे कि तुम्हारा कोई सिर नहीं है। प्रारंभ में तो यह 'जैसे कि' ही होगा। यह बहुत अटपटा लगेगा। जब तुम्हें यह महसूस बुद्धि से हृदय की ओर होगा कि तुम्हारा सिर ही नहीं है, तो बड़ा एक भिन्न मार्ग चुन लेती है-वह कानों से बहती है। अंधा व्यक्ति आंखों वाले किसी अटपटा और अजीब लगेगा। लेकिन बहने लगती है। __ भी व्यक्ति से अधिक संवेदनशील होता धीरे-धीरे तुम हृदय में स्थित हो जाओगे। अंधे लोगों में स्पर्श के प्रति ज्यादा गहरी है। कभी-कभी हो सकता है कि ऐसा न एक नियम है। शायद तुमने देखा हो, संवेदनशीलता होती है। यदि कोई अंधा भी हो, परंतु सामान्य रूप से ऐसा ही होता जो व्यक्ति अंधा है उसके कान अधिक व्यक्ति तुम्हें छुए, तो तुम्हें अंतर पता है। यदि एक केंद्र न हो तो ऊर्जा दूसरे केंद्र तत्पर, अधिक संगीतमय होते हैं। अंधे चलेगा, क्योंकि सामान्यतः छूने का से बहने लगती है। व्यक्ति अधिक संगीतमय होते हैं; संगीत बहुत-सा कार्य हम आंखों से ही कर लेते तो इस प्रयोग को-सिरविहीन होने के के लिए उनकी अनुभूति गहनतर होती है। हैं: हम एक-दूसरे को आंखों से छू रहे हैं। प्रयोग को-करके देखो जो मैं बता रहा क्यों? जो ऊर्जा सामान्यतः आंखों से बहती एक अंधा व्यक्ति आंखों से नहीं छू हूं, और अचानक तुम एक अदभुत बात है, अब उनसे तो बह नहीं सकती, तो वह सकता, तो ऊर्जा उसके हाथों से होकर अनुभव करोगेः ऐसा होगा जैसे पहली
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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