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मार्ग है सही। यदि आप कच्छ देश जाकर विजय सेठ और विजया सेठानी जो भविष्य में दीक्षा ग्रहण करनेवाले हैं उन्हें भोजन कराओ तो चौरासी हजार साधु को पारणा कराने का फल प्राप्त होगा।' जिनदास केवली ने पूछा : 'अहो! ऐसे तो उनके क्या गुण हैं?' केवली बोले, 'अनंत गुणों से वे भरपूर हैं। एक ने कृष्ण पक्ष में और दूसरे ने शुक्ल पक्ष में चौथा व्रत पालन का नियम धारण किया होने के कारण शुद्धतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत पालन कर रहे हैं।' केवली के मुख की यह बात सुनकर जीनदास श्रावक कच्छ देश पधारे। इन श्रावकश्राविका को ढूंढ निकाला। दोनों को वंदन करके उन्होंने केवली के मुख से सुनी हुई बात जाहिर की। मातापिता को इस व्रत की जानकारी हो गई इसलिए विजय सेठ, विजया सेठानी ने दीक्षा ली। उन्हें पारणा कराकर जीनदास सेठ धन्य बने और केवली ने कहे चौरासी हजार साधु को पारणा कराने का जो फल मिलता वह इस दम्पती को भिक्षा देकर प्राप्त किया।
विजय सेठ और विजया सेठानी ने केवली के पास जाकर चारित्र ग्रहण किया और अष्ट कर्मों को समाप्त करके केवलज्ञान पाया।
बुहारी खजूरी की चोटी पर जुल रही थी तब, उसके मन में एक जीवनव्रत जाग उठा :
जीऊँ तब तक जगत की स्च्छता के लिए जीऊँ... और बुहारी बनकर सबके घर में वह पहँच गई।
... गृहिणी की मदद से घर का कोना-कोना झाड़-बुहारकर साफ किया और सफाई कर्मचारी की मदद से गलियाँ स्वच्छ बनाई।
खुद के अंग अंग घिस गये और टूट-फूट गये तब तक इस प्रकार स्वच्छता के लिए समर्पण - व्रत जीवित रखा।
बुहारी की तरह स्वच्छता रखें।
जिन शासन के चमकते हीरे • ३५