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________________ १९ -विजय सेठ-विजया सेठानी ___ भरत क्षेत्र के कच्छ देश में विजय नामक श्रावक रहता था। बचपन के 'धार्मिक संस्कारों के कारण कृष्ण पक्ष याने वद के पखवारे में चौथा व्रत पालने का निश्चय किया था। कर्म संयोग से विजया नामक सुन्दर कन्या के साथ उनका ब्याह हुआ। सद्गुरु के योग से विजया ने शुक्ल पक्ष में चौथा व्रत पालने का नियम लिया हुआ था। शुभ दिन उनका विवाह हुआ। शादी के बाद पिया को मिलने सजधज कर रात्रि को विजया शयनकक्ष में पहुँची। कृष्ण पक्ष के तीन दिन बाकी थे इसलिये विजय ने कहा, 'हम तीन दिन के बाद संसारसुख भोगेंगे। मैंने कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचारी रहने का नियम लिया है।' यह सुनकर विजया चिंतातुर हो गई। उसे दिग्मूढ बने देखकर विजयने पूछा, 'क्या मेरे व्रतपालन में तूं सहकार नहीं देगी?' तब विजया बोली, 'आपने कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया है वैसे ही मैंने शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचारी रहने का चौथा व्रत धारण किया हुआ है। आप सुखपूर्वक दूसरी स्त्री से ब्याह करो और आपके व्रत अनुसार कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचारी रहना और नई स्त्री के साथ शुक्ल पक्ष में संसारसुख भोगना।' तब भर्तार ने प्रत्युत्तर दिया, 'अरे! हम लिये हुए व्रत जीवनभर पालेंगे। इसकी जानकारी किसीको भी न होने देंगे। माता-पिता हमारे व्रत की बात जानेंगे तब हम दीक्षा ले लेंगे।' दोनों ने सोच विचार कर तय किया कि जीवनभर व्रत पालन करेंगे। ___एक कमरे में एक ही पलंग पर दोनों साथ साथ सोते थे। बीच में एक तलवार रखते जिससे एक दूसरे का अंग एक दूसरे को छू न जाय । इस प्रकार पर्वत समान अटल रहकर दुनिया की नज़र में संसारी लेकिन यथार्थ रूप से बैरागी रहे । इस प्रकार कई वर्ष बीत गये। एक बार चंपानगरी में विमल नामक केवली पधारे। वहाँ केएक श्रावक जीनदास ने कहा : 'जिन्दगी का एक मनोरथ है कि चौरासी हजार साधु मेरे घर पारणा करें।' तब विमल केवली ने कहा, 'यह बात बननी संभवित नहीं है, क्योंकि इतने तपस्वी साधु आये कहाँ से? उनको सुजता आहार कैसे दिया जाय? लेकिन उतना ही फल मिले ऐसा एक जिन शासन के चमकते हीरे • ३४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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