SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करते दशार्णभद्र राजा को धीरे धीरे वैराग्य उत्पन्न हुआ। मुकुट, आभूषण निकालकर मानो कर्मरूप वृक्षों की जड़े निकाल रहे हो, वैसे अपनी मुष्टि से मस्तिष्क के बाल खींच डाले और गणधर के पास जाकर चारित्र ग्रहण करके प्रभु की परिक्कमा करके वंदन किया। इन्द्र ने दशार्णभद्र के पास आकर कहा, 'अहो महात्मन! आपके इस महान पराक्रम से आपने मुझे जीत लिया है।' ऐसा कहकर नमस्कार करके इन्द्र अपने स्थान पर लौट पड़े और दशार्णभद्र मुनि ने सुचारूपूर्ण व्रत पालन करके स्वयं को धन्य बनाया। 3200698035583685 888888 ! हम मेहमान दुनिया के... हम मेहमान दुनिया के, आप मेहमान दुनिया के, सब मेहमान दुनिया के, हैं मेहमान दुनिया के 1१। यहाँ पल, पहर या दिन माह, या कई साल रहेंगे, लेकिन कब जायेंगे निश्चित, नहीं सही कहेंगे ।२। बरावर बाजरा खूटेगा, उठ के तुरंत जायेंगे, संबंधी रोकेंगे तो भी, बाद पल भर न रहेंगे ।३। प्रभु की कृपा तब तक, हम यह खेल देखेंगे, निहारकर, व्योम तो उसका, बड़ा आनंद उठायेंगे ।४। जमा पूंजी जायेंगे छोड़कर, नहीं साथ कुछ ले सकेंगे, नहीं है मालिक तो अंत में हम फूटी बादामों के ।५। न कु छ लाये थे, न कुछ ले जायेगे, प्रभुजी के पाहुने, कोई बात की नहीं है कमी ।। भले ही प्यार उड जाये. हम लेश न रोयेंगे हम भी है उसी मार्ग में, जानेवाले आखिर जायेंगे ।। ---------------- जिन शासन के चमकते हीरे • ३३ ।
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy