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पायसान्न से क्या होगा?' यद्यपि हमारे गुरु की आज्ञा हमें माननी चाहिये। ऐसा मानकर सब एक साथ बैठ गये। तत्पश्चात् इन्द्रभूति ने अक्षीण महानस लब्धि द्वारा उन सर्व को पेट भर कर पारणा करवाया और उन्हें अचरज में छोडकर स्वयं आहार करने बैठे। जब तापस भोजन करने बैठे थे तब, 'हमारे पूरे भाग्ययोग से श्री वीर परमात्मा जगदगुरू हमें धर्मगुरू के रूप में प्राप्त हुए हैं व पितातुल्य बोध करने वाले मुनि भी मिलना दुर्लभ है, इसलिये हम सर्वथा पुण्यवान है। इस प्रकार की भावना करने से शुष्क काई भक्षी पाँचसौं तापसों को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। दत्त वगैरह अन्य पाँचसौं तापसों को दूर से प्रभु के प्रातिहार्य को देखकर उज्जवल केवलज्ञान प्राप्त हुआ। और कौडीन्य वगैरह बाकी के पांचसौं तापसों को दूर से भगवंत के दर्शन होते ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्होंने श्री वीर प्रभु की प्रदक्षिणा की और वे केवली की सभा की ओर चले । गौतम स्वामी ने कहा, 'इन वीर प्रभु की वंदना करो।' प्रभु बोले, 'गौतम! केवली की आशातना मत करो।' गौतम ने तुरंत ही मिथ्या दुष्कृत देकर उनसे क्षमापना की। उस समय गौतम ने पुनः सोचा, 'जरूर मै इस भव में सिद्धि नहीं प्राप्त करूंगा। क्योंकि में गुरुकर्मी हूँ।' इन महात्माओं को धन्य है कि जो मुझसे दीक्षित हुए परंतु जिनको क्षण भर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। ऐसी चिंता करते हुए गौतम के प्रति श्री वीर प्रभु बोले, 'हे गौतम! तीर्थंकरों का वचन सत्य या अन्य का?' गौतम ने कहा, 'तीर्थंकरों का' तो प्रभु बोले, 'अब अधैर्य रखना मत । गुरु का स्नेह शिष्यों पर द्विदल पर के छिलके समान होता है । वह तत्काल दूर हो जाता है और गुरु पर शिष्य का स्नेह है तो तुम्हारी तरह ऊन की कडाह जैसा दृढ है। चिरकाल के संसर्ग से हमारे पर आपका स्नेह बहुत दृढ हुआ है। इस कारण आपका केवलज्ञान रूक गया है । जब उस स्नेह का अभाव होगा तब केवल ज्ञान जरूर पाओगे।' प्रभु से दीक्षा लेने के ३० वर्ष के बाद एक दिन प्रभु ने उस रात्रि को अपना मोक्ष ज्ञात करके सोचा, 'अहो! गौतम को मेरे पर अत्यंत स्नेह है और वही उनको केवलज्ञान प्राप्ति में रूकावट बन रहा है, इस कारण मुझे उस स्नेह को छेद डालना चाहिये।' इसलिए उन्होंने गौतम स्वामी को बुलाकर कहा, 'गौतम! यहाँ से नज़दीक के दूसरे गाँव में देवशर्मा नामक ब्राह्मण है। वह तुमसे प्रतिबोध पायेगा, इसलिये आप वहाँ जाओ।' यह सुनकर 'जैसी आपकी आज्ञा' ऐसा कहकर गौतम स्वामी प्रभु को वन्दन करके वहाँ गये और प्रभु का वचन सत्य
जिन शासन के चमकते हीरे . ३२२