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है, यदि वे यहाँ वापस आयेंगे तो हम उनके शिष्य बनेगें। ऐसा निश्चय करके वे तापस एक ध्यान से उनके वापस लौटने की राह देखने लगे।'
अष्टापद पर्वत पर चौबीस तीर्थंकरो के अनुपम बिंबो की उन्होंने भक्ति से वंदना की। तत्पश्चात् चैत्य में से निकलकर गौतम गणधर एक बड़े अशोकवृक्ष के नीचे बैठे। वहाँ अनेकसुर-असुर और विद्याधरो ने उनकी वंदना की। गौतम गणधर ने उनके योग्य देशना दी। प्रसंगोपात उन्होंने कहा, 'साधुओं के शरीर शिथिल हो गये होते हैं, और वे ग्लानि पा जाने से जीवसत्ता द्वारा काम्पते काम्पते चलनेवाले हो जाते हैं।' उनके ऐसे वचन सुनकर वैश्रवण (कुबेर) उन शरीर की स्थूलता देखकर, ये वचन उनमें ही अघटित जानकर जरा सा हँसा। उस समय मनः पर्यवज्ञानी इन्द्रभूति उनके मनका भाव जानकर बोला, 'मुनिपने में शरीर की कृशता का कोई प्रमाण नहीं परंतु शुभध्यानपने में आत्मा का निग्रह करना ही प्रमाण है।' इस बात के समर्थन में उन्होंने श्री पुंडरीक और कंडरीक का चरित्र सुनाकर उनका संशय दूर किया।
'इस प्रकार गौतम स्वामीने कहा हुआ पुंडरीक - कंडरीक का अध्ययन समीप में बैठे वैश्रवण देव ने एकनिष्ठा से श्रवण किया और उसने समकित प्राप्त किया।
इस प्रकार देशना देकर शेष रात्रि वहाँ व्यतीत करके गौतम स्वामी प्रात:काल में उस पर्वत पर से उतरने लगे, राह देख रहे तापस उनको नजर आये। तापसों ने उनके समीप आकर, हाथ जोड़कर कहा, 'हे तपोनिधि महात्मा! हम आपके शिष्य बनते हैं, आप हमारे गुरु बनो।' गौतम स्वामी बोले, 'सर्वज्ञ परमेश्वर महावीर प्रभु हैं वे ही आपके गुरु बनें।' तत्पश्चात् उन्होंने बडा आग्रह किया तो गौतम ने उन्हें वही पर दीक्षा दी। देवताओं ने तुरतं ही उनको यतिलिंग दिया। तत्पश्चात् वे गौतम स्वामी के पीछे पीछे प्रभु महावीर के पास जाने के लिए चलने लगे।
मार्ग में कोई गाँव आने पर भिक्षा का समय हुआ तो गौतम गणधर ने पूछा, 'आपको पारणा करने के लिये कौनसी इष्ट वस्तु लाऊँ।' उन्होंने कहा, 'पायस लाना।' गौतम स्वामी अपने उदर का पोषण हो सके उतनी खीर एक पात्र में लाये। तत्पश्चात् इन्द्रभूति याने गौतम स्वामी कहने लगे, 'हे महर्षिओं! सब बैठ जाओ और पायसान्न से सर्व पारणा करें।' तब सबको मन में ऐसा लगा कि इतने
जिन शासन के चमकते हीरे • ३२१