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________________ __ भरतेश्वर ने अपना दूत बाहुबलिजी के पास तक्षशिला भेजा। तक्षशिला का राज्य बाहुबलिजी भोग रहे थे। दूत ने आकर बाहुबलिजी को भरतेश्वर की शरण में रहने को समझाया, जिससे भरत महाराज सच्चे अर्थ में चक्रवर्ती बन सकें। लेकिन बाहुबलि ने भरतजी का स्वामीत्व स्वीकार करने का साफ इनकार कर दिया। भरत और बाहुबलि दोनों युद्ध पर ऊपर आये। युद्ध लम्बा चला। खून की नदियाँ बहने लगी। दोनों में से किसीकी भी हार जीत न हुई। ___यह हिंसक लड़ाई अधिक न चले इसलिये सुधर्मेन्द्र देव ने दोनों भाईयों को आमनेसामने लड़ने को समझाया। दोनों भाई आमनेसामने लड़ने तत्पर हुए। प्रथम भरतेश्वर ने बाहुबलि के सिर पर जोर से मुष्टि प्रहार किया। बाहुबलि घुटनों तक जमीन में धंस गये। बाहुबलिजी की बारी आयी। हुँकार कर उन्होंने मुष्टि तानी। लेकिन विचार किया कि यदि मुष्टिप्रहार करूंगा तो भरत मर जायेगा। मुझे तो भ्रातृहत्या का पाप लगेगा। अब तानी हुई मुठ्ठी भी बेकार तो न जानी चाहिये, एसा सोचकर बाहुबलिजीने उस मुठ्ठी से उसी समय अपने सिर के बालों का लोचन कर डाला और वहीं पर चारित्र भी ग्रहण कर लिया। भरतेश्वर को बड़ा दुःख हुआ। संयम न लेने के लिए उन्हें बहुत समझाया लेकिन बाहुबलिजी चारित्र ग्रहण के लिए अटल रहे। और भगवान द्वारा कहे गये पांच महाव्रत भी धारण किये। उस समय उन्होंने भगवान को वंदन करने जाने का सोचा, लेकिन इस समय भगवान के पास जाऊँगा तो मुझे प्रथम अठ्ठानवें छोटे भाइयों को वंदन करने पडेंगे, वे उम्र में छोटे हैं, उनको क्यों नमस्कार करूं? ऐसा सोचकर वहीं उन्होंने कायोत्सर्ग किया और तपस्या करके केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद ही भगवान के पास जाने का मनमें ठान लिया। 'मैं कुछ जानता नहीं हूँ' - ऐसा कहने की हिंमत जिसमें है वही सच्चा जानकार बन सकता है। 'मैं सब कुछ जानता हूँ' - ऐसा कहनेवाला अज्ञानी एवं मिथ्याचारी होता है। जिन शासन के चमकते हीरे . १४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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