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________________ भरतेश्वर और बाहुबलि १ Social ८ भगवान आदिनाथ की दो पत्नियाँ : सुमंगला और सुनंदा सुमंगला और ऋषभ युगलिये रूप में साथ साथ जन्मे थे। सुनंदा के साथी युगलिये की ताड वृक्ष के नीचे सिर पर फल गिरने से मृत्यु हो गई थी । युगलिये में दो में से एक की मृत्यु हो ऐसा यह प्रथम किस्सा था । सौधर्मेन्द्र इन्द्र ने ऋषभदेव के पास जाकर कहा, 'आप सुमंगला तथा सुनंदा से ब्याह करने योग्य हो, हालाँकि आप गर्भावस्था से ही वितराग हो लेकिन मोक्षमार्ग की तरह व्यवहारमार्ग भी आपसे ही प्रकट होगा ।' यह सुनकर अवधिज्ञान से ऋषभदेव ने जाना कि उन्हें ८३ लाख पूर्व तक भोगकर्म भोगना है। सिर हिलाकर इन्द्र को अनुमति दी और सुनंदा तथा सुमंगला से ऋषभदेव का विवाह हुआ । समयानुसार ऋषभदेव को सुमंगला से भरत और ब्राह्मी नामक पुत्रपुत्री जन्मे एवं सुनंदा से बाहुबलि और सुन्दरी का जन्म हुआ । उपरांत, सुमंगला से अन्य ४९ जुडवे जन्मे । समय बीतते ऋषभदेवने प्रवज्या ग्रहण करने का निश्चय किया । भरत सबसे बड़े होने के कारण राज्य ग्रहण करने को कहा एवं बाहुबलि वगैरह को योग्यतानुसार थोडे देश बाँट दिये और चारित्र ग्रहण किया । - अलग अलग देशों पर भरत महाराज ने अपनी आन बढ़ाकर चक्रवर्ती बनने के सर्व प्रयत्न किये । अन्य अठ्ठानवें भाई भरत की आन का स्वीकार करना या नहीं, इसका निर्णय न कर सकने के कारण भगवान श्री आदिनाथ से राय लेने गये। भगवानने उन्हे बोध दिया, सच्चे दुश्मन मोह मान, माया, क्रोध वगैरह के साथ लड़ो याने चारित्र ग्रहण करो। चक्ररत्न अलग देशों में घूमकर विजयी बनकर लौटा लेकिन चक्ररत्न ने आयुधर्मशाला में प्रवेश न किया। भरत राजा के कारण पूछने पर मंत्रीश्वर ने कहा, 'आपके भाई बाहुबलि पर आपकी आन नहीं है। वे आपकी शरण में आवे तो ही आप चक्रवर्ती कहे जाओगे और चक्ररत्न आयु धर्मशाला में प्रवेश करेगा।' जिन शासन के चमकते हीरे • १३
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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