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________________ एक दिन भगवान से आदेश लेकर काउसग्ग ध्यान के लिए श्मशान में खड़े है। अपनी बेटी से ब्याह न करने के कारण बदला लेने के लिए सौमिल, (उसके श्वसुर) श्मशान में आते हैं और गजसुकुमाल के मस्तिष्क पर मिट्टी से मेंड बनाकर बीच में जलते अंगारे रखते हैं । जलती हुई अँगीठी में अंगारे जल रहे हो वैसे ही गजसुकुमाल के मस्तिष्क पर अंगारे जल रहे हैं। गजसुकुमाल असह्य पीड़ा होने पर भी सोच रहे है, मेरा कुछ भी जल नहीं रहा है। मेरे श्वसुर सचमुच मेरे सगे बने। जन्म जन्मांतर में इस जीव ने कई अपराध किये हैं, उन सबकी क्षमा माँग लूँ। इस प्रकार शुक्ल ध्यान में चढ़ गये। श्वसुर ने मुझे मुक्ति की पगड़ी पहनाई। ऐसा सोचते सोचते उनके सब कर्म समाप्त हो गये। सिर अग्निज्वाला से फट गया लेकिन मृत्यु होने से पूर्व ही गजकुसुमाल केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पधारें। हे प्रभु पार्श्व चिंतामणि मेरो मिल गयो हीरो, मिट गयो फेरो, नाम जपुं नित्य तेरो..... हे प्रभु पार्श्व प्रीत बनी अब प्रभुजी शुं प्यारी, जैसे चंद चकोर..... हे प्रभु पार्श्व __ आनंदघन प्रभु! चरण शरण है, दीयो मोहे मुक्ति को डेरो..... हे प्रभु पार्श्व उद्यम से मिले लक्ष्मी, मिले दृव्य से मान; दुर्लभ पारस जगमें, मिलना मित्र सुजान । जिन शासन के चमकते हरे . १२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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