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________________ सोना, हीरा, मोती वगैरह द्रव्यों की परीक्षा करनेवाले कई होते हैं, परंतु धर्मतत्त्व का परीक्षक वीरला ही होता है ! ऐसा वीरला तू है। तुने हिंसामय धर्म का त्याग करके दयामय अहिंसा धर्म स्वीकारा है। याद रख राजन् ! तेरी समृद्धि वृक्ष के पुष्प समान है। आगे तुझे उसके मोक्षरूपी फल प्राप्त होनेवाले हैं। वाकई में तेरा महान भाग्य है कि तुझे ऐसे ज्ञानी हेमचन्द्रसूरी मिले हैं। तू उनकी आज्ञा मानकर चलना ।' तीर्थंकरों की वाणी बंद हो गयी। वे अदृश्य हो गये । तत्पश्चात् कुमारपाल के पूर्वज राजा प्रगट हुए। उन्होंने कुमारपाल को गले लगाया। गुरुदेव की वन्दना की और कुमारपाल को कहने लगे : ‘वत्स, कुमारपाल ! गलत धर्म छोड़कर सही धर्म तुने स्वीकारा है। ऐसा पुत्र होने के लिये हम अपने आपको धन्य मानते हैं। जिनधर्म ही मुक्ति देने के लिये समर्थ है। इसलिये तेरे चंचल चित्त को स्थिर कर और तेरे परम भाग्य से प्राप्त इन गुरुदेव की सेवा कर और उनकी आज्ञा का पालन कर ।' इस प्रकार कुमारपाल को सलाह देकर पूर्वज हवा में विलीन हो गये । कुमारपाल स्तब्ध हो गया । हेमचन्द्राचार्य ने उसे समझाया, देवबोधि के पास तो ऐसी ही एक कला है जब कि मेरे पास ऐसी सात कलाएँ हैं । सब इन्द्रजाल है । हम दोनों ने तुझे दिखाया वह तो स्वप्न समान है। सच तो सोमनाथ महादेव ने जो जैनधर्म पालन करने का कहा वही है। राजा के मन का समाधान हुआ। उसने हेमचन्द्राचार्य को वंदन किया और एक नया उपकार करने के लिए उनका आभार माना । एक दिन कुमारपाल श्री हेमचन्द्राचार्य के पास बैठे हैं, भूतकाल में वे इधरउधर ठोकरें खाते रहें उसकी बातें कर रहे हैं और कहते हैं : 'एक दिन सिद्धराज के भय से छिपता हुआ अरवल्ली के पहाड़ पर एक वृक्ष के नीचे बैठा था । वहाँ एक चूहें को बील में से बाहर निकलता देखा। उसके मुँह में चांदी का सिक्का था । एक जगह पेड़ के नीचे रखा और बील में गया और दूसरा सिक्का लेकर बाहर आया । इस प्रकार वह बत्तीस सिक्के बाहर लाया। मुझे विचार आया कि चूहा इन सिक्कों का क्या करेगा? इसलिये जब चूहा बील में गया तो सिक्के मैंने ले लिये। जब चूहा बाहर आया, सिक्के न देखे तो चूहा अपना सिर पत्थर पर पटकने लगा। इस प्रकार अपना सिर पत्थर पर टकराकर चूहा मर गया। मुझे बड़ा पश्चात्ताप हुआ कि इस तिर्यंच के जीव को भी लक्ष्मी का मोह है । इस पाप का प्रायश्चित मुझे दो ।' जिन शासन के चमकते हीरे • २६५
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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