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________________ गुरुदेव ने कहा, 'कुमारपाल ! जिस स्थान पर चूहे ने मृत्यु पायी वहाँ एक भव्य मंदिर बनवा । वहीं तेरा प्रायश्चित है । ' कुमारपाल ने वहाँ एक भव्य मंदिर बंधवाया। आज भी तारंगा के पहाड़ पर वह मंदिर खड़ा है। उसमें भगवान अजितनाथ की भव्य प्रतिमा बिराजमान है। गुरुदेव हेमचन्द्राचार्य के उपदेश अनुसार इस प्रकार कई जैनमंदिर कुमारपाल ने बनवाये । हरेक मंदिर के समीप एक एक बगीचा भी बनवाया ताकि इन मंदिरो में सदैव पुष्पपूजा हो सके। इन बगीचों में जो भी फूल लगते वे सब जिनेश्वर भगवान की पूजा में ही प्रयुक्त होते थे । भरुच में भी एक ऐसा मंदिर' समडी - विहार' था जो जीर्ण हो चुका था । भरुच दण्डनायक श्री भट्ट ने इस मंदिर को नये सिरे से बनवाना शुरू किया। वहाँ की देवी नर्मदा ने विघ्न डाला। नीव खोदी गई तो देवी नर्मदा ने मजदूरो को उछाल दिया और प्रकट होकर कहा, 'यह नीव अधिक गहरी खोदकर मेरा अपमान किया है। इसके लिये मुझे एक बत्तीस लक्षणवाले स्त्री-पुरुष का बलिदान दे।' देवी के बलिदान के लिये आम्रभट्ट और उसकी पत्नी अपनी बलि देने के लिये तैयार हुए। `नवकार मंत्र का ध्यान धरकर दोनों खड्डे में एकसाथ कूद पड़े। यह देखकर नर्मदा ने प्रकट होकर आम्रभट्ट और उसकी पत्नी का मनुष्यप्रेम और प्रभुभक्ति देखकर नया जीवन दिया। सब मजदूर और आम्रभट्ट तथा उसकी पत्नी अच्छे-भले होकर खड्डे में से बाहर आये । दण्डनायक आम्रभट्ट ने देवी को उत्तम फल व नैवेद्य चढ़ाकर उनकी पूजा की और मंदिर अन्य कोई उपद्रव बगैर बना। गुरु श्रीहेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल ने भी भरुच आकर भगवान मुनि सुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा करवायी । तत्पश्चात् आम्रभट्ट कड़ी बीमारी में फँस गये । दण्डनायक की वृद्ध माता ने देवी पद्मावती की आराधना की। पद्मावती प्रकट हुई और कहा : 'गुरुदेव हेमचन्द्रसूरी ही इनको अच्छा कर सकते हैं। यह दैवी उपद्रव है, उन्हें गुरुदेव ही शांत कर सकेंगे।' माता ने दो पुरुषों को पाटण भेजकर गुरुदेव का यह संदेश भेजा। गुरुदेव विचार करके शिष्य यशचन्द्र को साथ लेकर आकाश मार्ग से प्रयाण करके अल्प समय में ही भरुच पहुँच गये और सैंधवीदेवी जिसने यह उपद्रव किया था उसे योग द्वारा श्री यशचन्द्र ने वश करके श्री आम्र भट्ट को निरोगी बनाया । जिन शासन के चमकते हीरे • २६६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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