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________________ शुरू हो गया परंतु मंदिर का कार्य राजा ने सोचा था उतनी तेजी से नहीं हो रहा था। इस कारण राजा अशांत था। उसने इस मंदिर का कार्य जल्दी पूर्ण करने का उपाय बताने के लिये आचार्यश्री को बिनती की। श्री हेमचन्द्राचार्य ने इसके लिये कोई व्रत लेने के लिये कहा और कहा, 'व्रतपालन से पुण्य बढ़ता है और कार्य जल्दी पूरा होता हैं।' कुमारपाल ने प्रसन्न होकर व्रत लेने के लिये हाँ कही और योग्य लगे वह व्रत देने के लिए गुरुदेव को कहा। आचार्यश्री ने मांसाहार व मदिरापान छोड देने के लिये कहा। राजा ने दो प्रतिज्ञाएँ ली।' 'मांसाहार जीवनपर्यंत नहीं करूंगा।' 'शराब जीवनपर्यंत नहीं पीऊँगा।' गुरुदेव को संतोष हुआ, राजा को आनंद हुआ। दो वर्ष में सोमनाथ मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। राजा ने वहाँ की यात्रा करने का निश्चय किया। आचार्यश्री को भी सोमनाथ के दर्शन करने के पधारने की प्रार्थना की। गुरुदेव ने कहा, 'श्री शत्रुजय तथा गिरनार की यात्रा करके वे सीधे देवपत्तन आयेंगे।' राजा अपने रिसाले के साथ देवपत्तन गये और गुरुदेव शत्रुजय एवं गिरनार की यात्रा करके देवपत्तन पहुँचे। राजा हर्षित हुआ और धामधूम से राजा रिसाले तथा गुरुदेव ने अपने शिष्यों के साथ मंदिर में प्रवेश किया। ' ___बड़े भावपूर्वक सबने वंदना की, गुरुदेव ने दो हाथ जोड़कर शीश झुकाकर स्तुति की, जिनके रागद्वेष का नाश हो चुका है - वे ब्रह्मा हो, विष्णु हो या महादेव हो, उनकी मैं वंदना करता हूँ।' ___स्तुति सुनकर राजा नाच उठा। राजा ने एक चित्त से ध्यान धरने के लिए गुरदेव को पूछा, 'ऐसा कौनसा धर्म है और ऐसे कौनसे देव हैं जो मुझे मोक्ष दिला सके।' राजा की बात सुनकर गुरुदेव ने दो क्षण के लिए अपनी आँखे बंद की, मानों कुछ संकेत मिला।आँखे खोलकर उन्होंने राजा के सामने देखा और हाथ पकड़कर कुमारपाल को महादेव के गर्भद्वार में ले गया और कहा, 'देखो! मैं आपको इस देव के आपको प्रत्यक्ष दर्शन करा दूं। वे देव जैसी कहे वैसी उपासना आप करें।' राजा ने आश्चर्य से पूछा, 'क्या ऐसा हो सकता है?' 'हाँ अब मैं ध्यान धरता हूँ। इस धूपदानी में धूप डालते जाना । शंकर भगवान प्रगट होकर ना न कहे तब तक यह सुगंधी धूप डालते रहना।' और गर्भद्वार बंद जिन शासन के चमकते हीरे • २६२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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