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________________ कहो कि आज रात्रि को रानी के महल पर न जाये।'उदयन ने उस प्रकार कुमारपाल के पास जाकर कहा। कुमारपाल रानी के महल पर उस रात्रि को न गया। उस रात्रि को महल पर बीजली गिरी। महल जल गया और रानी भी मर गयी। 'सुबह महामंत्री ने ये समाचार सूनकर शीघ्र ही कुमारपाल को जाकर मिले। कुमारपाल ने आश्चर्यसहित पूछा, 'ऐसी अचूक भविष्यवाणी किसने की थी?' _ 'श्री हेमचन्द्राचार्य की यह भविष्यवाणी थी' - ऐसा जानकर कुमारपाल गद्गद् हो गया और तीन तीन बार जिसने मेरा प्राण बचाया वह कहाँ है?' ऐसा पूछने लगे।वे पाटण में ही है ऐसा जानकर कुमारपाल ने उनसे मिलने की आकांक्षा दर्शायी। मंत्री ने राजसभा में कुमारपाल को पधारने के लिए कहा, और हेमचन्द्राचार्य को वह वहाँ बुलवायेगा ऐसी व्यवस्था की। . ____ आचार्यश्री उदयन मंत्री के साथ राजसभा में पधारे। कुमारपाल तथा अन्य अधिकारी उनका स्वागत करने दरवाजे पर खडे थे। कुमारपाल ने झुककर वंदना की और 'तीन तीन बार प्राण बचाने के एवज में यह पूरा राज्य आप स्वीकार करें' .- ऐसा आग्रह हेमचन्द्राचार्य को करा। हेमचन्द्राचार्य ने जैन साधू के आचार समझाये और कहा, 'हम ऐसा कुछ स्वीकार नहीं कर सकते, हाँ, यदि हो तो हम छोड़ सकते हैं अब यदि तुझे उपकार का बदला चुकाना है तो तेरा आत्महित सिद्ध कर ले, इस कारण तू जिनेश्वर धर्म को ग्रहण कर । तूने पहले भी वचन दिया था - इसलिये तेरा वचन पाल । तू वचन सच कर दिखा क्यों कि महापुरुषों के वचन मिथ्या नहीं होते।' __कुमारपाल ने कहा, 'आप कहेंगे उस अनुसार ही मैं करूगा। आपके सम्पर्क में लगातार रहकर मैं कुछ तत्त्व प्राप्ति कर सकूँगा। राजा एवं आचार्य के ये सम्बन्ध मृत्युपर्यंत सदैव अखण्ड बने रहे। एक बार कुमारपाल राजसभा में बैठे थे तब देवपत्तन से आये सोमनाथ महादेव के पुजारियों ने प्रवेश किया।महाराजा को प्रणाम करके अपना परिचय दिया तथा निवेदन किया, 'महाराज, देवपत्तन में समुद्र तट पर स्थित भगवान सोमनाथ का काष्ठ मंदिर जीर्ण हो चुका है, इसलिये इस मंदिर का जीर्णोद्धार करना अति आवश्यक है। आपको हमारी बिनती है कि इस मंदिर के जिर्णोद्धार का पुण्य आप प्राप्त करें।' राजा कुमारपाल को यह सत्कार्य जचा। पांच अधिकारियों को मंदिर के जिर्णोद्धार का कार्य सौंपा। अल्प समय में ही पाषाण का मंदिर बनवाने का कार्य जिन शासन के चमकते हीरे • २६१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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