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हेमचन्द्रसूरीजी ने आह्वान स्वीकार कर लिया। ___आचार्य देव ने व्याकरण के आठ ग्रंथ काश्मीर से मंगवाये । इन सब ग्रंथों की खूबियाँ, कमजोरी खूब बारीकाई से पहचान ली। सिद्धराज से माँगनें पर सब सुविधा मिलने लगी जिससे एक ही वर्ष में सवा लाख श्लोक से प्रमाणित व्याकरण का महाग्रंथ बनाया और उसे नाम दिया, 'सिद्ध हेम व्याकरण ।'सिद्ध याने सिद्धराज और हेम याने हेमचन्द्रसूरी।
सिद्धराज यह ग्रंथ देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने गाजे-बाजे के साथ हाथी के सिर पर रखकर बडी धामधूम से सबराजमार्गो पर घूमाकर राजसभा में ले गया। इस ग्रंथ का पूजन करके ग्रंथ को ग्रंथालय में रखा गया।
३०० कातिबों को बिठाकर इस ग्रंथ की प्रतिलिपियाँ की गई। राजा द्वारा ये प्रतिलिपियाँ भारत के सभी राज्यों में भेजी गयी। अनेक विद्वानों ने इस ग्रंथ की प्रशंसा की। आज भी संस्कृत भाषा का अभ्यास करनेवाले 'सिद्धहेम' व्याकरण पढ़ते हैं। ___ सिद्धराज सब बात से सुखी था। परंतु एक दुःख था कि उसे कोई संतान न थी। रानी के आगे वह अपना दुख व्यक्त करता था। रानी आश्वासन देती कि यह सब भाग्य के आधीन है, तो उसके बारे में शोक करने से क्या होगा? पूर्व जन्म में कोई पुण्यकार्य नहीं करे होंगे फिर भी हम तीर्थयात्रा करेंगे तो इच्छित फल मिलेगा। सिद्धराज के गले में यह बात उतर गयी। उसने श्री हेमचन्द्राचार्य को तीर्थयात्रा के लिये पूछा और तीर्थयात्रा में साथ चलने की विनंती की। आचार्य ने देव राजा का आग्रह देखकर और साथ चलने की स्वेच्छा न होने पर भी सम्मति दे दी।
शुभ मुहूर्त पर राजा ने शत्रुजय गिरिराज तरफ प्रयाण किया। अनेक मुनिवरों के साथ आचार्यदेव ने भी राजा के साथ ही प्रयाण किया।
राजा सिद्धराज रानी के साथ रथ में प्रवास कर रहे थे, लेकिन आचार्यदेव अन्य मुनिवरों के साथ पैदल चलते होने से सिद्धराज को वह बात पसन्द न आयी। उन्होंने आचार्यदेव को रथ देने के लिये कहा, परंतु गुरुदेव ने ना कह दी। और कहा, 'हम वाहन में बैठ नहीं सकते हैं। जूते पहने बिना हमें नंगे पैर चलना होता है। यदि हम वाहन में बैठेंगे तो वाहन खींचनेवाले घोडो' को कष्ट होगा और वाहन के नीचे अनेक छोटे-बड़े जीवों की हिंसा होगी।
जिन शासन के चमकते हीरे • २५३