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________________ .. हाथी उपर से राजा की और श्री श्री हेमचन्द्राचार्य की आँख से आँख मिली। राजा ने दो हाथ जोड़कर प्रणाम किये। आचार्य ने दाहिना हाथ ऊँचा करके 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया। . राजा ने हाथी खड़ा रखवाया। नीचे उतरकर कुछ उपदेश देने के बिनती की। आचार्य ने निम्नानुसार कहा : सिद्धराज! तुमने गज को क्यों रुकवाया? उसे एकदम वेग से आगे चलाओ जिससे उसको देखकर सर्व दिग्गज त्रस्त होकर जाते रहे क्योंकि अब पृथ्वी का भार आपने उठाया है, ये दिग्गजों की क्या जरूरत है?' राजा ने यह सूनकर खूब ही आनंदित हुआ। शीघ्र काव्य रचना और आचार्यदेव की कल्पनाशक्ति उसको असर कर गयी। राजा ने कहा, 'गुरुदेव! मुझ पर कृपा करके आप प्रतिदिन राज्यसभा में पधारें।' 'राजन्! अनुकूलता,अनुसार आपके पास आने का प्रबन्ध रखूगा।' दुबारा 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद देकर आचार्य श्री आगे चले। यह थी सिद्धराज के साथ हेमचन्द्राचार्य की पहली मुलाकात । इसके बाद कभी-कभार आचार्य श्री राजसभा में जाने लगे। उनकी मधुर और प्रभावशाली वाणी का राजा पर अच्छा असर पड़ने लगा। और राजा जैन धर्म तरफ आकर्षित हुआ। मालवा के राजा को पराजित करके ही राजा पाटण में प्रवेश करना चाह रहा था।मात्र उन्हें मालवा का राज्य ही पसन्द था अपितु उन्हें मालवा की कला, साहित्य और संस्कार भी पसन्द थे। यह सब वह गुजरात में लाना चाह रहा था। मालवा की धारा नगरी से विशाल ज्ञान भण्डार बैलगाडियों में भरकर वह पाटण लाया, उसमें से राजा भोज द्वारा लिखा हुआ ग्रंथ 'सरस्वती कंठाभरण' उसके हाथ में आया। यह ग्रंथ देखकर उसे विचार आया कि ऐसा ग्रंथ गुजरात का कोई विद्वान न बना सकेगा? ग्रंथ के साथ मेरा नाम जुड़ेगा तो ग्रंथ और मैं दोनों अमर हो जायेंगे।' राजसभा में ही राजा ने सरस्वती कण्ठाभरण का ग्रंथ हाथ में लेकर राजसभा में बैठे हुएं विद्वानों को कहा, 'राजा भोज द्वारा रचे गये ऐसे व्याकरण शास्त्र जैसा शास्त्र क्या गुजरात का कोई विद्वान नहीं रच सकेगा?' क्या ऐसा कोई विद्वान विशाल गुजरात में नहीं जन्मा है?' राजा की और हेमचन्द्रसूरी की आँखे मिली! "मैं राजा भोज के व्याकरण से भी सवाये व्याकरण की रचना करूंगा।' जिन शासन के चमकते हीरे . २५२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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