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हो जायेंगे। ये दो मंत्र मैं देती हूँ, वह एकाग्रचित्त से सूनो।
शासन देवी ने ये दो मंत्र सुनाये । सुनाकर कहा, 'चलो आपको कई दिव्य औषधियाँ बता दूँ। आप वह बीन लेना। ये औषधियाँ रोग पर तत्काल असर करनेवाली हैं।'
अभी सूर्योदय हुआ न था। दोनों महात्माओं ने कई औषधियां इकट्ठी कर ली।
देवी ने कहा : आप ये अमृत पी जाओ ताकि आपको सुनाये हुए दो मंत्र भूल न पाओ।'
देवी ने अमृत से भरा कमण्डल उनके आगे धरा।।
देवेन्द्रसूरी ने पीने की ना कही क्योंकि अभी रात्रि का समय था। सोमचन्द्र समयज्ञ थे - नियम व अपवाद के जानकार थे। वे तुरंत ही सब अमृत घटघटा गये। दोनों मंत्र सोमचन्द्र मुनि की स्मृति में बैठ गये। देवेन्द्रसूरी ये दोनों मंत्र भूल गये।
शासनदेवी ने दोनों महानुभावों को मंत्रबल से उठाकर पाटण में उनके गुरुदेव देवचन्द्रसूरी के पास छोड़ दिया। और शासनदेवी अदृश्य हो गयी।
देवेन्द्रसूरीजी तथा सोमचन्द्र मुनि के मुख से यह चमत्कारिक घटना सुनकर देवचन्द्रसूरीजी अत्यंत प्रसन्न हुए। सोमचन्द्र मुनि बड़े विनयी, विनम्र, विवेकी, बुद्धिमान, गुणवान, भाग्यवान और रूपवान है । उनको आचार्यपद देने का सोचा। संघ को इकट्ठा करके सोमचन्द्र मुनि को आचार्य पद देने की बात कही। संघ ने हर्षपूर्वक बात को स्वीकारा । वैशाख सुदी तीज - अक्षयतृतीया के दिन शुभमुहूर्त में सोमचन्द्र मुनि ने देवचन्द्रसूरीजी को आचार्य पदवी दी और उनका नाम हेमचन्द्रसूरी जाहिर किया। संघ ने उनका जयजयकार किया। अब हम सोमचन्द्र मुनि को आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीजी के नाम से पहचानेंगे। __आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरी पाटण के राजमार्ग पर चले जा रहे हैं। उनके पीछे दो शिष्य है। सामने से गुजरात के राजा सिद्धराज की सवारी आ रही थी। राजा हाथी पर बैठा हुआ, नगर को देख रहा था। लोग दो हाथ जोड़कर राजा का अभिवादन कर रहे थे।
राजा की नजर हेमचन्द्रसूरी पर गिरी। प्रतापी व प्रभावशाली आचार्य को देखकर राजा स्तब्ध हो गया और उसे लगा कि यह साधू कौन होंगे? मैंने आज तक ऐसे साधू देखें नहीं हैं।
जिन शासन के चमकते हीरे • २५१