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________________ पुत्र का नाम बुआ ने 'चांगदेव' रखा । जरा बड़ा होने पर पाहिनी ने उसे अरिहंत का 'अ' बोलते सिखाया और तत्पश्चात् नवकार मंत्र का 'न' सिखाया। पाहिनी चांगदेव को भगवान का दर्शन वंदन करना सीखाती है और बार बार गुरुदेव के पास ले जाती है। उसे हाथ जोडकर, शीश झुकाकर वंदन कराती है। गुरुदेव के सामने देखकर चांगदेव हँसते हैं। गुरुदेव धर्मलाभ का आशीर्वाद देते हैं। वह बड़ा होता जाता है, पढ़ने के लिये शाला में छोड़ा जाता है । वह उसकी असाधारण यादशक्ति से अध्यापक का लाड़ला बन जाता है। ___ पांच वर्ष का चांगदेव पाहिनी के साथ एक बार जिनमंदिर में गया। आचार्य श्री देवचन्द्रसूरीजी वहाँ दर्शनार्थ वहाँ पधारे थे। उनके शिष्यने आचार्यदेव को बैठने के लिये आसन बिछाया था जिस पर चांगदेव बैठ गया। यह देखते ही आचार्य श्री हँस पडे। चांगदेव भी हँसने लगा। आचार्यश्री ने पाहिनी को कहा, 'श्राविका! तुझे याद तो है न तेरा स्वप्न, रत्न तुझे मुझको सौंपना होगा। वह स्वप्न इसी का इशारा है। तेरा पुत्र मेरी गद्दी संभालेगा और जिन शासन का महान प्रभावक आचार्य बननेवाला है। तू मुझे सौंप दे इस पुत्र को।सूर्य एवं चन्द्र को घर में नहीं रख सकते और यदि घर में रहे तो दुनिया को प्रकाश कौन देगा? तेरा पुत्र सूर्य जैसा तेजस्वी है और चन्द्र जैसा सौम्य है। उसका जन्म घर में रहने के लिये नहीं हुआ। वह तो जिन शासन के गगन में चमकने के लिये जन्मा है । इसलिये उस पर कामोह छोडकर मुझको सौंप दे।' पाहिनी ने गुरुदेव को उसके पिता से उसकी मांग करने के लिये कहा। एक दिन चाचिंग को उपाश्रय पर बुलाकर गुरुदेव ने कहा, 'चांगदेव बड़ा भाग्यशाली है । उसका भविष्य बड़ा उज्ज्वल है। उसका मोह तुम्हें छोड़ना पडेगा।' 'याने गुरुदेव?' चाचिंग ने पूछा। .'चांगदेव को मुझे सौंपना होगा, उसका घाट (आकार) मैं गढूंगा। वह मेरे पास रहेगा।' गुरुदेव ने कहा। चाचिंग ने ऐसा कहा कि सोचकर जवाब दूंगा। गुरुदेव ने कहा, 'पुत्रस्नेह से मत सोचना, उसका हित सोचना । तुम्हारा यह पुत्र लाखों जीवों का तारणहार बननेवाला है।' ___ चाचिंग सेठ घर आये। उन्होंने चांगदेव को पूछा, 'बेटा! गुरुदेव तुम्हें जिन शासन के चमकते हीरे • २४५
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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