SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पसन्द हैं?' _ 'हाँ पसन्द हैं, मैं गुरुदेव के साथ रहूंगा। उनके पास पढूंगा । वह जैसा कहेगें वैसा करूंगा।' चाचिंग सेठ ने पाहिनी देवी से भी चर्चा की। पाहिनी ने अपनी अनुमति दे दी। और चाचिंग सेठ चांगदेव गुरुदेव को सौंपने का विचार करने लगा। माता के पास आचार्य फिर से पुत्र की माँग करते हैं। उस समय चाचिंग घर नहीं है, फेरी करने गया हैं। क्षण भर के लिए माता झिझकती है। परंतु शुभ भावि को ध्यान में लेकर पुत्र को अर्पण कर देती है। और आचार्य उसको लेकर विहार करके खंभात जाते हैं । इस तरफ चाचिंग घर आता है। उसको मालूम पडता है कि चांगदेव को आचार्य ले गये हैं : तो उसे वापिस ले आने खंभात जाते हैं । वहाँ उदयन मंत्री और आचार्य के के समझाने पर गुरुदेव को पुत्र अर्पण करके वापिस लौट जाते हैं। . गुरुदेव देवचन्द्रसूरीजी चांगदेव को पढ़ाने लगे। उसका विनय और बुद्धि देखकर गुरुदेव को भरोसा हो गया कि यह लड़का बडी जल्दी विद्वान बन जायेगा। सब शास्त्रों का अभ्यास कर लेगा। ___ एक दिन गुरुदेव ने गुजरात के महामंत्री उदयन को अपने पास बुलाकर चांगदेव के बारे में बात की। उनको जैन धर्म पर बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने चांगदेव की दीक्षा का सब खर्च और महोत्सव करने के लिये प्रसन्नता से हाँ कह दी और महासुदी चौदहवीं के दिन बड़े उत्सवपूर्वक दीक्षा दी और उसका नाम सोमचन्द्र सूरीश्वर मुनि रखा। आचार्यदेव श्री देवचन्द्र सूरीश्वरजी स्वयं सोमचन्द्र मुनि को अभ्यास करवाते हैं । साधूजीवन के आचार-विचार सीखाते हैं । सोमचन्द्र मुनि पढ़ा हुआ याद रखते हैं। गुरु महाराज का विनय करते हैं। - सोमचन्द्र मुनि गुरु महाराज से महान ज्ञानी पुरुषों के जीवनचरित्र सुनते हैं। उन्हें चौदह पर्व के नाम और उन शास्त्रों के विषय में संक्षेप में समझाते हैं। इस प्रकार ज्ञान उपार्जन करते हुए सोमचन्द्र मुनि के मन में विचार आते कि मैं ऐसा ज्ञानी न बन सकू? मुझे ऐसा ज्ञानी बनना हो तो मुझे माता सरस्वतीदेवी की उपासना करनी चाहिये । इसलिये जहाँ सरस्वती देवी की मूल पीठ जो काश्मीर जिन शासन के चमकते हीरे . २४६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy