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मुनि को कहा, 'यह दासत्व करनेवाला मनुष्य है जो वृद्धि पाकर इसी घर का स्वामी बनेगा।' इस प्रकार के साधू के वचन श्रेष्ठी ने दिवार की ओर में खड़े रहकर सूने। इससे मानो वज्राघात हुआ हो ऐसा बड़ा खेद उसे हुआ। उसने सोचा 'इस बालक को किसी भी उपाय से मार डालूं तो बीज का नाश करने के बाद अंकुर कहाँ से आये?' इस प्रकार सोचकर उसने उस बालक को लड्डु का लालच देकर चाण्डाल के घर भेजा। वहाँ एक चाण्डाल को श्रेष्ठी ने पहले से ही द्रव्य देकर साध रखा था और उसे कहा था कि 'मैं तेरे पास भेजूं उस बालक को मारकर उसकी निशानी मुझे बताना।' उस बालक को हिरन के बच्चे की भाँति मुग्ध आकृतिवाला देखकर उस चाण्डाल को दया आ गयी, जिससे उसकी कनिष्टिका ऊंगली काटकर बालक को कहा, 'रे मुग्ध! यदि तू जीवित रहना चाहता हो तो यहाँ से जल्दी भाग जा।' यह सूनकर उसी सागर श्रेष्ठी के गोकुल गाँव में वह पहुँचा। गोकुल गाँव के रक्षक ने उसे विनयी जानकर पुत्र के रूप में रखा। वहाँ वह सुख से रहने लगा। क्रमानुसार वह युवा हुआ। __एक बार सागर श्रेष्ठी गोकुल में आये। वहाँ छिदी हुई ऊंगली के चिह्न से उन्होंने दामन्नक को पहचाना । इसके बाद गोकुल के रक्षक ने किसी कामका बहाना बताकर दामन्नक को अपने नगर राजगृह भेजा। साथ में एक चिठ्ठी दामन्नक को दी और अपने पुत्र को देने के लिए कहा। दामन्नक पत्र लेकर शीघ्र राजगृह पहुँचा। ज्यादा चलने से वहाँ पहुँचते ही वह थक चुका था, जिससे गाँव बाहर उद्यान में कामदेव के मंदिर में विश्रांति लेने बैठा। वहाँ थकान के मारे सो गया। उतने में सागर श्रेष्ठी की विषा नामक पुत्री अपनी इच्छा से उसी कामदेव के मंदिर में आयी। वहाँ दामन्नक के पास अपने पिता की मुद्रावाला कागज देखकर उस कागज को उसने धीरे से ले लिया और कागज खोलकर धीरे से उसे पढ़ने लगी। . ___ 'स्वस्ति श्री गोकुल से लि. श्रेष्ठि सागरदत्त पुत्रको स्नेहपूर्वक फरमाते हैं कि इस पत्र लानेवाले को विलम्ब बगैर तुरंत ही विष देना। इसमें कोई संदेह मत करना।
इस प्रकार का लेख पढ़कर दामन्नक के रूप से मोहित बनी विषाने विष के 'ष' के आगे अपनी आँख के काजल द्वारा 'T'काना (आकार का चिह्न) बढ़ा दिया जिस कारण विष की जगह विषा पढ़ा जाता था। पश्चात् वह कागज मोड़कर
जिन शासन के चमकते हीरे • २४२