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पाकर उन्होंने गुरु को पूछा, 'क्या उस विमान से आप आये हो?' गुरु ने कहा, ऐसा नहीं है परंतु सर्वज्ञ के वाक्यों से (सूत्रों से ) हम यह सब जानते हैं। तब फिर से उन्होंने पूछा, ‘यह विमान कैसे मिलता है?' 'चारित्र से मिलता है ' यों गुरु ने कहा - जिससे उसने दीक्षा ली। परंतु सदैव तप करने की शक्ति न थी तथा नलिनी गुल्म विमान में जाने की तत्परता से गुरु की आज्ञा लेकर स्मशान भूमि पर जाकर उन्होंने
अनशन किया। उनके पूर्वभव में अपमानित बनी स्त्री मरकर वहाँ लोमड़ी बनी थी। उसने उन्हें देखा और बैर भाव उत्पन्न होने से रात्रि के तीन प्रहर तक उनके शरीर का भक्षण किया । अति वेदना सहन करते हुए शुभभाव के चौथे - प्रहर कालानुसार
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नलिनीगुल्म विमान के देवता बने। यह बात जानकर वैराग्यभाव से उनकी माता ने एक गर्भवती बहू को घर पर छोड़कर बाकी इकतीस बहूओं के साथे दीक्षा ली। घर पर रही बहू को पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने अपने पित्रा के नाम की स्मृति के लिये - उसी स्थान पर ' अवंति पार्श्वनाथ' की प्रतिना भरवायी । बडा जिनमंदिर बनवाकर उसमे स्थापना की। यही वह बिंब है लेकिन विप्रो ने इकट्ठे मिलकर उस प्रतिमा के उपर ही शिवलिंग की स्थापना कर दी थी। यह शिवलिंग मेरी की हुई स्तुति कैसे सहन कर पाता ? यह सब सुनकर विक्रम बड़ा राजी हुआ। और उसने उस प्रतिमा के पूजन के लिये 100 गाँव दिये तत्पश्चात् बोला, 'हे महाराज ! मेंढक को भक्षण करनेवाले अनेक चतुर सर्प हैं परंतु धरती का धारण करनेवाला तो शेषनाग एक ही है। उसी प्रकार नाम से तो पण्डित अनेक हैं परंतु तुम्हारे जैसा कोई नहीं । ऐसी स्तवना करके राजा अपने स्थान पर लौट गया। इस प्रकार सिद्धसेनने गँवाया हुआ तीर्थ पुनः प्राप्त करके जैनशासन की बड़ी उन्नति करवाई जिससे बारह वर्ष की आलोयणा के सात वर्ष व्यतीत हुए थे । और पांच वर्ष बाकी रहे थे फिर भी संघ ने उन्हे पुनः गच्छ में ले लिये और उन्होंने पुनः आचार्य पद संभाला। तब से वे कुवादमे अंधकार रूपी तिमिर का नाश करने से दिवाकर के समान सिद्धसेन दिवाकर सूरी कहे जाने लगे ।
वहाँ से वे विहार करके ओंकारपुर पधारे वहाँ मिथ्यावादियों का बड़ा जोर था। वे जैन चैत्य बनाने न देते थे। इससे उन्होंने विक्रम राजा को समझाकर वहाँ जैन चैत्य बनवाया। वहाँ से वे दक्षिण की और विहार करते हुए प्रतिष्ठानपुर पहुँचे। तत्पश्चात् अपना आयुष्य पूर्ण होने आया है। ऐसा जानकर वे अनशन प्रारंभ करके स्वर्ग पधारें ।
जिन शासन के चमकते हीरे • २३७