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-मदिरावती
क्षितिप्रतिष्ठित नगर में रिपुमर्दन राजा को मदनरेखा नामक रानी से मदिरावती नामक पुत्री हुई। वह बाला दूज के चन्द्रमा की भाँति बढ़ती हुई क्रमानुसार युवा हुई।
एक बार राजसभा में राजा बैठा था तब मदनरेखा ने उत्तम वस्त्रों और गहनों वगैरह से सजाकर मदिरावती को राजसभा में भेजा। राजा ने उसे गोद में बिठाकर ऐश्वर्य के मद के अभिमान से सभा के लोगों को कहा, 'ऐसी दिव्य समृद्धिवाली सभा और मुझ से अधिक उत्तम शोभावाला परिवार किसके पास है?' लोगों ने कहा, 'आप जैसी सभा तथा परिवार अन्य कहीं नहीं है।' यह सूनकर मदिरावती ने हँसकर सिर हिलाया। राजा ने सिर हिलाने का कारण पूछा तो पुत्री ने कहा, 'पिताजी !' ये लोग आपको प्रसन्न करने के लिये कहते हैं, परंतु यह सब गलत है। लोग एक से बढ़कर एक होते ही हैं। इसलिये आपको इस प्रकार ऐश्वर्य में मद करना ठीक नहीं हैं।
राजा ने लोगों को पुनः पूछा, 'आपका ऐसा सुख किसके प्रासाद से मिला है?' लोगों ने कहा, 'आपके प्रासाद से।' मदिरावती ने लोगों को कहा, 'आप गलत क्यों कहते हो?' हरेक जीव अपने शुभाशुभ कर्म से भला या बुरा फल पाता है। इस प्रकार अपनी बात तोडनेवाली पुत्री को अपनी दुश्मन मानकर राजा ने पूछा : तू किस कारण सुख भोग रही है?' वह बोली, 'मैंने पूर्व भव में शुभ कर्म किये हैं जिसके फलस्वरूप मैं यह सुख भोग रही हूँ। यदि आप ही सर्व लोक के सुख का कारण हैं तो सबको सुख क्यों नहीं देते?' कई हाथी, घोडे, पालकी पर बैठकर जाते हैं और कई दुःखी सेवक तुम्हारे आगे दौड़ते हैं । पापीओं को सुख देने में आप समर्थ नहीं हैं, मैं मेरे पुण्य से आपके यहाँ उत्पन्न हुई हूँ। आप तो मात्र निमित्त हैं। पुत्री के ऐसे वचन सुनकर क्रोधित बने राजा ने कहा, यदि तू मेरा प्रसाद मानेगी तो तेरा उत्तम राजकुमार के साथ ब्याह करवाऊँगा, वरन् दीनदुखी के साथ ब्याह करवाऊँगा।' पुत्री ने कहा, 'आप गर्व न करें। मेरे कर्म अनुसार होगा वह सही होगा।' राजा ने क्रोध से सेवकों को आज्ञा दी, 'कोई नीच कुल के दरिद्री को लाओ। उसके साथ कर्म में मानती इस पुत्री की शादी करा दूं।'जिसके शरीर से मवाद बह रहा था ऐसे एक कोढी को सेवकों ने राजा के सम्मुख पेश किया।
राजा ने पुत्री को कहा, 'तेरे कर्म से यह कोढी आया है। इससे तू ब्याह कर।' मदिरावतीने उठकर तत्काल उस कोढी से पाणिग्रहण किया। उस समय सब लोग हाहाकार करने लगे। राजा ने पुत्री के सर्व अलंकार उतार लिये - और कोढी के साथ नगर के बाहर धकेल दिया। धर्म मे अति दृढ रुचिवाली मदिरावती कोढी के साथ
जिन शासन के चमकते हीरे • २३८