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________________ -कपिल ऋषि कौशांबी नगरी के राज्य दरबार में काश्यप नामक एक शास्त्री था। उसकी स्त्री का नाम श्रीदेवी था। उनके पुत्र का नाम कपिल... हमारी कहानी का नायक! कपिल का लालनपालन बड़े लाड़-प्यार से हुआ, सो वह कुछ पढ़ा भी नहीं। वह पन्द्रह वर्ष का हुआ तब उसके शास्त्री पिता स्वर्गवासी हुए । राज्यशास्त्री की पदवी दूसरे एक विद्वान को प्राप्त हुई। । ___धीरे धीरे बाप की जमापूँजी खत्म हो गई । भोजन के लाले पड़े ऐसी स्थिति हो गई। __एक दिन राज्यशास्त्री की पालकी अपने घर के पास से गुजरती हुई श्रीदेवी ने देखी । अपने पुराने दिन याद आये और सोचने लगी, 'एक दिन मेरे पति भी ऐसी इज्जतदार पदवी भोगते थे। कितने सुख के दिन थे।' ऐसे सोच-विचार में आँखे भर आईं और आंसु बहने लगे। कपिल ने यह देखा और माँ को दःखी होने का कारण पूछा। काफी आनाकानी के बाद माँ ने कहा, 'यदि तूं पढ़ा-लिखा होता तो शास्त्री की पदवी तेरे पिता की तरह तूं भी भोगता और हम कितने अच्छे सुखी रहते।' यह सुनकर कपिल ने कहा, 'माँ! मैं बुद्धिशाली तो हूँ लेकिन पढ़ा नहीं, लेकिन अब मैं योग्य गुरु से विद्याभ्यास जरूर करूंगा।' माँ ने उसे श्रीवस्ती नगरी में रहते उसके पिता के मित्र इन्द्रदत्त के पास जाकर अभ्यास करने को कहा। कुछ ही समय में कपिल श्रीवस्ती जाकर इन्द्रदत्त को मिले । अपने मित्र के पुत्र को आया जानकर अभ्यास कराने के लिए इन्द्रदत्त तैयार हुए, लेकिन इन्द्रदत्त अपने घर कपिल को रखने के लिए असमर्थ थे। इसलिए पंडित कपिल को लेकर एक गृहस्थ के पास गये। गृहस्थ ने एक विधवा ब्राह्मणी के घर रहने-खाने की व्यवस्था कर दी। इस प्रकार आजिवीका की चिंता तो समाप्त हुई लेकिन एक झमेला खड़ा हुआ। कपिल जवान था और ब्राह्मण बाई भी जवान थी। दोनों युवा... एकांत में मिलन... एक दूसरे के प्रेम में बंधे। प्रीति बढ़ी और कपिल ब्राह्मणी के साथ संसार भोगने लगे। और विद्या प्राप्त करना भूल गये। ___अब गृहस्थाश्रम की आर्थिक जिम्मेदारी, कपड़े-अनाज वगैरह की जिम्मेदारी कपिल के सिर पर आई । पैसे किस प्रकार कमाने वह तो कपिल जानता ही न था। परेशानी बढ़ती गई। एक दिन उसकी चंचल स्त्रीने एक मार्ग बताया कि गाँव का राजा प्रातः जल्दी जाकर प्रथम आशीर्वाद देनेवाले को दो मासा सोना देता जिन शासन के चमकते हीरे . ९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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