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करके योग्य लगा वैसे स्वयं ही दीक्षा लेली ।
ऐसा देखकर, अपना कोई उपाय अब काम का नहीं ऐसा समझकर माताजीने भारी मन से संयम के लिए छूट देदी। बत्तीस नारी एवं माताजी वगैरह मुनिराज के पास पधारे । अवंति सुकुमाल को पांच व्रत ग्रहण कराने की बिनती की। मुनिराज ने प्रेम से व्रत ग्रहण करवाये ।
अब अवंति सुकुमाल गुरुजी को हाथ जोड़कर कहते हैं, 'मैं तपक्रियाआचार पाल नहीं सकूंगा। आप अनुमति दे तो अनशन करूं और जल्दी मुक्ति पा लूँ।' मुनि महाराज ने जैसे आपको सुख ऊपजे ऐसा कहकर अनुमति दी । अवंति सुकुमाल ने क्षमा-याचना गुरु के पास करके श्मशान में जाकर अनशन प्रारंभ किया । श्मशान में पहुँचते हुए पाँव में काँटे लगे और खून पाँव से बहने लगा था । उसकी गंध से एक लोमड़ी उसके बच्चों समेत वहाँ आई । पाँवो को काटने लगी और धीरे धीरे संपूर्ण शरीर को चीर फाड़कर रुधिरमाँस की ज़ियाफत उडाई । कालानुसार अवंति सुकुमाल ने अपने निश्चय अनुसार नलिनगुल्म विमान में जन्म पाया । दृढ मनोबल से इच्छित सुख पाया ।
दूसरे दिन माताजी एवं अन्य स्त्रीयाँ अवंति सुकुमाल की वंदना हेतु गुरुजी के पास पधारीं और पूछा, 'कहाँ है हमारे अवंति ?' गुरुजी कहते हैं, 'उन्होंने तो अनशन लिया है। जहाँ से जीव आया था वहाँ वह गया ।' सर्व परिवारजनों ने श्मशान में आकर अवंति सुकुमाल का चीरा-फटा शरीर, शरीर के टुकड़े देखे! मोहवश बहुत रोये । अंत में एक नारी को घर छोड़कर, सबने चारित्र ग्रहण करके सद्गति प्राप्त की ।
तुझसा नहीं समर्थ, अन्य दीन उद्धारक प्रभु, मुझसा नहीं पात्र अन्य, जग मे दिखेगा विभु ! मुक्ति मंगल स्थान फिर भी न चाह मुझे लक्ष्मी को थोड़ी दे दो सम्यग् रत्न श्याम जीव तो तृप्ति होगी बड़ी ।
जिन शासन के चमकते हीरे ८