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________________ ८७-वृद्धवादी सूरी एवं सिद्धसेन दिवाकर सूरी विद्याधर गच्छ के श्री पादलिप्तसूरी के शिष्य स्कंदीलाचार्य से कुमुद नामक विप्र ने बुढ़ापे में दीक्षा ली, इससे उन्हें विद्या जबान पर चढ़ती न थी।ने ऊँची आवाज़ में (चीख कर) रात्रि के समय रटन करते थे। इससे गुरुमहाराज ने निषेध किया कि रात्रि के समय ऊँची आवाज़ से बोलना नहीं, तथापि वह दिन को भी बड़ी आवाज़ से रटता था, सो श्रावकों ने कहा, 'यह ऊँची आवाज में पूरा दिन रट रट करता है तो क्या मुसल फुलायेगा?' इस वचन से वह बड़ा शरमिंदा हुआ। उसने सरस्वती देवी की आराधना की। इक्कीसवें उपवास पर उसे सरस्वती प्रसन्न हुई और वरदान दिया कि 'तू सर्व विद्या में पारगामी हो जायेगा, तू कहेगा वैसा मैं तुझे कर दूंगी।' इस प्रकार सरस्वती वरदान देकर गयी। तत्पश्चात् उसने चौक में एक मुसल लेजाकर बीचोबीच खड़ा किया और हाथ में पानी की अंजलि लेक निम्नानुसार मंत्र बोला : : 'हे सरस्वती देवी! हमारे जैसे जड़भरत भी तेरी कृपा से वादी जैसे विद्वान होते हैं, तो इस मुसल को फुला दे।' - ऐसा मंत्र बोलकर उसने मुसल पर पानी की अंजलि छिडकी तो सरस्वती देवी ने तत्काल उस मुसल को फुला दिया अर्थात् नवपल्लवित बना दिया। सूके लकड़े में भी शीघ्र ही पत्ते, फूल, फल, डालियाँ तना, और जड सब कुछ बन गया। हूबहू (हरा पेड) देखकर सब लोग बड़े विस्मित हुए। (यह बात चारोंओर फैल गई जिससे उनका वादीत्व सर्वत्र प्रसिद्धि पा गया।ये वादी ऐसे विद्वान बने कि उनके आगे कोई भी वादी वाद करने में समर्थ न बन सके। उनकी प्रतिष्ठा चारोंओर जम गई। गुरु ने उन्हें आचार्य पद दिया, जिससे उनका नाम 'वृद्धवादीसूरी' पड़ा। उस समय उज्जेयनी नगरी में विक्रमादित्य राज्य करता था। उनके राज्य में राजा का प्रिय देवर्षि नामक स्त्री से उत्पन्न सिद्धसेन नामक पुत्र था। वह राज्य में बडा पण्डित माना जाता था, अपितु वह अपने बुद्धि-केबल और मिथ्यात्व के उदय से इतना बड़ा अभिमानी हो गया था कि पूरे जगत को एक तिनके की तरह मानता। सिद्धसेन अभिमान से ऐसा कहता कि जो कोई भी वाद में मुझे जीत ले तो मैं उसका चेला बन जाऊँ।' ऐसी प्रतिज्ञा धारण करके वह सर्वत्र घूमता था। उतने में उसने जिन शासन के चमकते हीरे . २३२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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