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________________ वृद्धवादीसूरी की कीर्ति सूनी, जिससे उन पर इर्षा रखकर उनको जीतने के लिए सम्मुख बढ़ा। भरूच के नजदीक एक गाँव में वृद्धवादी सूरी मिले। परस्पर बातचीत करते हुए सिद्धसेन ने वाद करने की मांग की। वृद्धवादी ने कहा, वाद करने की मेरी ना नहीं परंतु यहाँ गवाह और न्याय करनेवाले कौन हैं? कोई नहीं है। जिससे हमारी 'जय-पराजय' का निर्णय कौन करेगा। अभिमान से उद्धत बने सिद्धसेन ने कहा कि “इस जंगल के गोपाल (ग्वाले) हमारे साक्षी हैं। हमारा वाद चलने दो।' वृद्धवादी ने कहाः 'जब ऐसा ही है तो प्रथम पूर्व पक्ष आप ही उठाइये।' तत्पश्चात् सिद्धसेन ने तुरंत ही तर्क से कठोर वाक्य वाले उलटे-सूलटे पदों का उच्चारण किया। इससे ग्वाले उब गये और बोले, 'अरे यह तो बेकार बकवास कर रहा है। कुछ भी समझ में आता नहीं है, और फोगट भैंस की भाँति रंभा रहा है, धिक्कार हे उसे।' इसके बाद वृद्धवादी की ओर देखकर ग्वाले बोले, 'अरे भाई बुढे!' कान को मजा आवे ऐसा तू जानता हो तो बोल! सूने तो सही! तब वृद्धवादी सूरी तालियाँ बजाते हुए और नाचते हुए बोले: नवि मारिये नवि चोरिये परदारा गमन निवारिये थोवं थोवं दाइए तो सग्ग टग टग जाइए गेहूँ गोरस गोरडी गज गुणियल व गान छ: गग्गा यदि इहाँ मिले तो सग्गह का क्या काम चूडा चमरी चूनरी चोली चरणा चीर छ: चच्चे सोहे सदा सती जैसा शरीर (३) वृद्धवादी का ऐसा निराला गीत सुनकर ग्वाले बड़े प्रसन्न हुए। और सब एक साथ नाचने तथा ताली बजाकर गीत में साथ देने लगे।गायन पूरा होने के बाद बिना पूछे ही सब ग्वाले चिल्ला उठे, 'इस बूढ़े ने इस जवान को जीता, जीता, जीता ऐसा कहकर तालियाँ बजाने लगे। इससे सिद्धसेन निस्तेज बन गया। इधवादी ने उसको जिन शासन के चमकते हीरे . २३३
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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